मगर वह है कि नहीं आतीअब आएगी, अब आएगी वह, सोचता रहता हूँ रोज़ सुबह से ही, उसका रास्ता ताकता रहता हूँ जब भी दिख जाती है वह, खुश हो जाता हूँ मैं;इंतजार करता रहता हूँ, पलकें बिछा के रखता हूँ और, अभी और क़रीब आ जाए, यही चाहता हूँ मगर वह है कि नहीं आती, आह-सी भरता हूँ मैं।:एक-डेढ़ माह पहले:एक कमज़ोर-सा घोंसला, खाली पड़े हुए कमरे में कोने के डंडे व झाड़ू के सहारे जो बनाया था उसनेगिर रहा था, संभाला, फिर मज़बूत बनाया था हमने;:इस के चार-पांच दिनों के बाद:शायद सुरक्षा चेक करने, साथी को संग लाई थी वहअब तो अपने घोंसले तक नहीं जाना चाहती है वहभावी अण्डों का है कोई दुश्मन, यूं समझती है वह!कभी-कभी आती है खिड़की पर, ग्रिल पर या डोर परमेरे घर के आस -पास रेलिंग पर या आम की डाल पर प्यारी सी बुलबुल सामने लॉन में या बिजली के तार पर; कितना सुकून मिल जाता मुझको, फुदक- फुदक कर एक बार फिर, मेरे घर के अंदर कमरे में वह आ जाती घोंसले पर आ कर बैठ जाती, उस पर जो, छा जाती!मगर वह है कि नहीं आती.. …र.अ. bsnl
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Bahut sundar rachna…
यथार्थ से परिपूर्ण बहुत खूबसूरत रचनात्मकता ………आपकी रचना में रचित इन पलो को वास्तविकता में स्वंय मैंने भी जिया है ……….अति सुन्दर !!
सुन्दर रचना.
BEHAD UMDA SOCH RAQUIM KEE SUNDER……BISWASH
Very Very nice……….. Good work….
अनु जी
निवातिया जी
विजय कुमार सिंह जी
बी. पी. शर्मा जी
काजल सोनी जी:
आप सभी गुणी जनों का
बहुत-बहुत आभार।
वैसे आप सभी लोगों ने being sensitive personality,
इस दर्द को महसूस किया होगा,
निवातिया जी का क्या कहना, उन्होंने तो इसे शिद्दत से एहसास किया होगा।
Thanks again, all of you pl.
behad sundar …………
बहुत खूब…..मेरी एक रचना “भरोसा” भी आप पढियेगा………
ati sundar rachana………. mai bhi ease hi sathiyo se ghiri rahti hu …..ali ji……..inka activity dekna mujhe pasand hai.
शिशिर जी
सी एम बाबू जी
मधु जी;
आप सभी गुणी जनों का
बहुत-बहुत आभार।
सी एम बाबू जी की रचना ‘भरोसा’
मैंने पढ़ी, वह दिल को छूने वाली है।
बहुत ही सुंदर…
Manoj ji
Thanks a lot.