न कर सकी तू वफ़ा ऐ सनममुझे तुझसे कोई गिला भी नहींन कर सकी तू वफ़ा ……………चाह क्या थी तेरी ऐ हमदमकभी जुस्तजू तो की होतीहम तो थे राहो में खड़े हरदमकोशिशें ढूंढने की की होतीन कर सकी तू वफ़ा ……………ख्वाहिशें जो भी थी मेरे दिलमेंजो भी थी कहती थी मेरी आँखेजी रही थी लेकर दर्द सिनेमेंमुझसे क्यों कह न सकीं तेरी आँखेन कर सकी तू वफ़ा ……………अब जो तू सामने नहीं है सनमदिल यु मायूस हो जाता हैचाह ये है तुम मिलो अगले जनमबिन तुम्हारे जिया न जाता हैन कर सकी तू वफ़ा ऐ सनममुझे तुझसे कोई गिला भी नहींन कर सकी तू वफ़ा ……………—————//**–शशिकांत शांडिले, नागपुरभ्रमणध्वनी – ९९७५९९५४५०
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Bahut sundar….
धन्यवाद अनुजी !
Nice !!!
अश्विनजी धन्यवाद !
बहुत ही सुंदर…
धन्यवाद मनोजजी !
bhut sundar virah yatha ka chitran kya hai apne…….
स्नेही आभार मधुजी !
ati sundar…………..
स्नेही आभार बाबूसीएमजी
Beautiful…………………!
स्नेही आभार निवातियाजी
सुन्दर रचना.
स्नेही आभार विजयजी !
बहुत ही खूबसूरत…………
हृदयी आभार काजलजी ….