तले है जिसके बचपन खेला
तले है जिसके हुआ जवान
देख आँखों में आंसू आते
गिरता अब वो वृक्ष विशाल
जड़े है इसकी कितनी गहरी
कितने लम्बे इसके है शाख
चाहे धूप रहा या हो बारिश
हर पल लिया हमको है पाल
सूख रही अब इनकी टहनी
थाम न पाता खुद का भार
झुका हुआ ही करता सेवा
करता अब भी हमारा ख्याल
चाहे बाढ़ आया या आया तूफान
समेट लिया अपने तन से है ये
डिगा न तनिक अपने कर्मो से
चाहे कुदरत ने खेला कैसा भी खेल
अपने कर्मो से न डिगा वो माँ-बाप है kahane ka arth yahi hai satik sunder ……..vijay jee meri rachna – dahez bhi padhey……..
आपके सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.
आपके सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद..
वृद्धावस्था में यही हाल होता है ………….मात पिता को वृक्ष की संज्ञा देकर यथार्थ का चित्रण किया है आपने !
आपके प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद.
Bahut. Sundar rachna…
धन्यवाद अनु जी |
क्या खूब समझा है आपने माँ बाप को,ऐसे ही होते हैं वृक्ष की ही तरह…………
आपके सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.
bilkul sahi likha aapne…………..bahut khoobsoorat………
आपका बहुत धन्यवाद.
Bahut sunder………………………
धन्यवाद…….
बहुत ही खूबसूरत……. लाजवाब….
धन्यवाद सोनी जी |
.बेहद खूबसूरत
धन्यवाद मनोज जी ।