हे प्रभु, तुम मेरे गीत न गावो है सन्नाटा चहूं और अबचुप चुप है कोलाहल भीसहमे सहमे वाद्यवृंद हैंटूट चुकी है पायल भीकरुण स्वरों का राज हुआ हैबिखरे सुर हैं घायल भीसब आँखों में लरज रहे हैंसावन के कुछ बादल भीअब न खिलेगी धूप कहीं भी चाहे तुम कितना भी गावोपर तुम मेरे गीत न गावो डाल डाल पर रेंग रहा हैविषधर जैसा पतझर भीशाख शाख पर लिखा हुआ हैपीड़ा का हर अक्षर भीछिपा हुआ है नीड़ नीड़ मेंघायल हो हर नभचर भीकाँप रहा आँसू अनजानासब पलकों के अंदर भीअब न मिलेगी महक कहीं भी चाहे तुम कितना भी गावोपर तुम मेरे गीत न गावो दौड़ रहा है रुधिर शिरा मेंडरा हुआ भय कण कण मेंजूझ रहा है हर मानव भीअपने मन की उलझन मेंबरस रही है कुंठा जैसेमानस के अंतरमन मेंचमक रही है चंचल चिंताचिनगारी-सी चिंतन मेंशीतल धारा अब न बहेगी चाहे तुम कितना भी गावोपर तुम मेरे गीत प गावो हैं पथ पर पीड़ा के पत्थरऔर फफोले पग में भीपथ पर चलने को आतुर हैंटूटी-सी बैसाखी भीगिरकर फिर उठने की क्षमताखो बैठीं हैं साँसें भीकाँधे काँधे कब तक चलताहै भारी यह ठठरी भीअब मंजिल दिखे ना कभी भी चाहे तुम कितना भी गावोपर तुम मेरे गीत न गावो।—- ——- —- भूपेंद्र कुमार दवे00000
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ATI UTTAM BHUPENDRA JEE……. SUNDER RACHNA
Bahut sunder rachana…………………….
बहुत खूबसूरत भूपेंद्र कुमार दवे जी ……………..कृपया मेरी रचना ” कैसे मुकर जाओगे ” को भी नजर कर अपने अमूल्य विचारो से अनुग्रहित करे !!
Lovely creation sir ji…
बाह्य पिडा बोध कराती आपकी रचना…
बहुत खूब…
Behad sunder rachna
अति सुन्दर, सर जी
अति सुन्दर
behad hi sundar………………
अति सुंदर……….
bhut khoobsurat rachana….. apki achhi lgi……..gujari nhi …ko bhi pdhe…