पेड़ -पौधें लहराते हवाओं में, बिजली चमकती बादालो में, मैं भी घिर गया तूफ़ानो मे, कट रहे थे पल मुश्किलों में।कोई पूछे हाल हमारा यही आश लगा हम बैठे थे ,याद आ रही अपनो कीबस रब को याद किये जा रहे थे ,गरजते -गरजते बादलपानी का पेगा़मबता रहे थे ,छुआ हृदय तो खुशी का जामपिला रहें थे।
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khubsurat rachna
धन्यवाद मनोज सर मानता हूँ कि मेरी कविता मे गलतियाँ है, लेकिन वास्तविकता को पहचानने का प्रयास करें । इसी के साथ मैं निवातिया सर, गुणिजनो आैर सबिता मैंम का आभार प्रकट करता हूँ।
Sundar rachna…
अनु मैंम आापका धन्यवाद, मुझे अभी आेर अच्छा करना हैं।
Sundar………………
धन्यवाद श्रीमान जी, मैं आपका तह दिल से शुक्र अदा करता हूँ।
ACCHI RACHNA THODA SPELLING PAR DHYAN DIGIYE….. AURON KI RACHNA BHI PADIYE काहे की बेईमानी KO NAZAR ANDAZ KAREN……….
जी आपका धन्यवाद सर.
Khubsurat bhav………………………
सर जी मैं आपका धन्यवाद करता हूँ।
Gud Job Rishi …………keep it up……..
Thank you so much sir.
Ji aap m se kio mujhe hindi Kavita ke bare m tek aur thumri ke bare m Bta Sakta h
सबसे बेहतर तो आपको आपके हिंदी टीचर या म्यूजिक के टीचर बता सकते…..फिर भी जो मुझे समझ उसके हिसाब से बता रहा हूँ…..कविता एक पर्वाह है भावों का जिसमें पंक्ति छोटी बड़ी हो सकती है….एक पंक्ति का अंत अगर एक ही जैसे शब्द उच्चारण से होता है तो तुकांक कहलाती है नहीं तो अतुकांक….जैसे आप की ये रचना शुरू होती ‘पेड़ -पौधें लहराते’ अब हरेक पंक्ति या तो ‘ते’ से ख़त्म हो या “ऐ” से तो तुकांक नहीं तो अतुकांक होती कविता….ठुमरी गायन कला की एक प्रस्तुति है रागों के ऊपर….प्रचलन के बारे में मुझे ज्यादा ज्ञात नहीं है कब शुरू हुआ इसका….यह श्रृंगाररस होती है जब आप सुनेंगे तो इसको पाएंगे….हाँ औरों को सुनो तो आदरणीया गिरिजा कुमारी देवीजी को ज़रूर सुनियेगा, पंडित भीमसेन जोशीजी……और पाकीज़ा का यह नगमा जिसे बोलते हम “ठाड़े रहिओ ओ बांके यार” ठुमरी आधारित है….जगजीत सिंहजी की गाई…”दामन वा तोरे लागि”….”खुल खुल जाए बाजूबंद” बहुत सारे गायकों ने गाई है… की आनंद लो….
Ji apka dhanyawaad sir lekin Apne reply kafi Dino baad Kia h. Apki sir Ik yahi visheshta h ki, na Bol Kar aap bahut kuch Bta Jate h.
Waoooo nice poem. ..
Thanks prinku
Nice poem bhai
thanks Akash Bhai
nice poem Bhaiya
thanks bhaiya Raman
Nice poem bro super poem
thanks bhai sonu
Nice poem bhai
apka thanks bhai Ritesh