(1)कल के साथ जीना कोई बुराई नहीआज की नींव कल पर धरी है।आज की सीख कल काम आएगी फिरकल को छोड़ अधर-झूल में कैसे जीया जाए। (2)यादें और पतंग एक जैसी ही होती हैंडोर से टूट कर एक शाख पर अटकती है ,तो दूसरी दिल और दिमाग मे ।बस एक हल्का सा झोंका …..,औरहिलोर खा बैठी। (3) तारीफ भी अजीब चीज हैइन्सान को चने के झाड़ पर चढ़ा देती है।उसका तो कुछ नही बिगड़ताशामत चने के झाड़ की आती है। ××××××× “मीना भारद्वाज”
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bhut khoob meena ji…………………..
तहेदिल से धन्यवाद मधु जी ।
बहुत खूब
हार्दिक आभार सर्वेश जी।
Bahut sundar…Meena ji…
बहुत -बहुत धन्यवाद अनु जी ।
Sahi likha aapne ….ati sundr ….
रचना सराहना के लिए आभार श्याम जी ।
Bade kaam shabdon me gambheer chintan kiya hai aapne Meena ji …….
हृदयतल से धन्यवाद शिशिर जी ।
Very nice creation
Thank you very much Manoj ji .
Acchi panktya
हार्दिक आभार बिन्दु जी।
Zindagi ka falsafa samete…..sirf “kashinikaayein” 👌
हृदयतल से धन्यवाद शर्मा जी।
आप चने के झाड़ वाली तारीफ़ नहीं करियेगा. बहुत ही सुन्दर भावों में रचित.
धन्यवाद विजय जी , अपने साहित्य परिवार के सभी सदस्य विद्वान हैं उन्हें जितना सराहा जाए कम ही
होगा।
बेहद खूबसूरत……………अंतिम पद तो बहुत ही महत्वपूर्ण है !!
बहुत-बहुत धन्यवाद निवातिया जी ।