कुछ अनसुलझे जिंदगी के पन्नो ने आज साथ छोड़ दियेकल जो नया था, आज उसी को कल मे फेर दियेकुछ अनसुलझे जिंदगी के पन्नो ने आज साथ छोड़ दिये- २
कुछ तो बात हम सब मे थी; कभी चाहते, ना चाहते भी साथ चल दिये,किसी से लड़े भी, किसी से जुड़े भी; कन्ही कम, कन्ही ज्यादा आगे बढ़ दिये,कुछ अनसुलझे जिंदगी के पन्नो ने आज साथ छोड़ दियेजिस हौसले से उड़ान भर के देश को छोड़ा था,आज भी कन्ही दिल मे दर्ज, उस उड़ान को ताजा कर दिये,कुछ अनसुलझे जिंदगी के पन्नो ने आज साथ छोड़ दियेकुछ सिखना है, कुछ सिखाना है, जो पाया है, उससे बेहतर लौटाना है,शायद इसी की जद्दो जहद मे, हर बार नयी राह पे चल दिये,कुछ अनसुलझे जिंदगी के पन्नो ने आज साथ छोड़ दिये
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bhav achha hai ……….typing mistek ke chlte bhav sampresan me dikkat aa rahi hai..
अति उत्तम
Panktibadh rahna me bhav to aspast ho rahi hai per kuch linen random ke least badi ho gai hai please take care
Sundar bhaav…..madhuji ne Sahi kaha …..
sunder bhaav………………………..
Thank you, so much for the feedback, this is my first poem. I am still learning, and need a lot of improvements.