बादल करने लगे हैं शोर, मेघ देख नाचे हैं मोर।जंगल में अब मची है दौड़, घमासान और लगी है हौड़।बिजली चमकी ताबड़ तोड़, अंधा- धुंधी नाचे हैं ठौर।जंगल में मंगल की हौड़, पैरों में पानी की पौड़।पंखों में उनके हिलकोर, आँखों में पानी की छौर।व्यथा कथा का है यह दौर, बादलों में हो उनकी डोर।जिन्हें नचाएं चारों ओर, तीव्र गति से नाचें हैं मोर। सर्वेश कुमार मारुत
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मानसून आगमन का सन्देश देती अच्छी रचना …………….!!
आपका बहुत आभार, श्रीमान जी !
Bahut sundar…
khoobsoorat………………..
Bahut khub………………
nice…………………… bhut khoob…………….
Very true
अति सुन्दर …………,