जुल्फे जब उसकी उड़ती काली…मदपुरित मदिरा सी भरती हरीयाली…आलिंगन और स्पर्श अलौकिक…तुच्छ न्यून और सुख भौतिक…ज्ञान. धर्म, मर्म, वह सब…दैनिक द्वंद मिटाती जैसे रब …शांति भाव दिखाती अधर-लाली…जुल्फे जब उसकी उड़ती काली…मदपुरित मदिरा सी भरती हरीयाली…
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Krishna yah rachnaa divy prem or sanssarik prem ke beech me confuse ho gai lagti hai…….
Aapki बात बिल्कुल सही है Shishir sir…
पर आपने जो बात कही की “दिव्य प्रेम”
और “सांसारिक प्रेम” दोनो मे मुझे कोई
फ़र्क नही लगता क्योकी मेरे हिसाब से
प्रेम दिव्य ही होता है…
पर आधुनिक मानसिकता वाले लोगो ने इसे
साधारण या सांसारिक बना दिया है…
…
आज हर कोई प्रेम तो करता है लेकिन उस
प्रेम को हम प्रेम नही कह सकते वो महज
एक शारीरिक आकर्षण है…
…
आज वो व्यक्ति जिसकी शादी हो चुकी है
और उसके बच्चे भी है वो भी किसी दूसरी
महीला के बाहुपाश मे जाना चाहता है,इन
सभी ने प्रेम को धुमिल कर दिया है और
वो दिव्य से लौकिकता(आकर्षण)की ओर
चला गया है…
…
Shishir sir आप से गुजारीश है की आप
दिव्य प्रेम,और सांसारिक प्रेम
को परिभाषित करके हमे इसके बारे मे
बताये ताकी आगे मे जो रचनाये रचू उसमे
इन प्रेमांतरो का ध्यान रख सकू…
…
Krishna jee -5th& 6th pankti ko thoda change kare baki sab thik hai……. thoda dushron ki rachna bhi padheyn……. thanks.
Thanku very much bindeshwar sir ji…
मुझे भी लग रहा है की इस रचना मे
बदलाव की जरुरत है……
आप यू ही मुझे मेरी रचनाओ मे हुई कमीयो
को बताते रहीये ताकी आगे मे और अच्छा
लिख सकू…
आपकी अति कृपा होगी…
Wellcome……………something is missing somewhere or you may explain it a little bit more. Expression is good.
Ji विजय सर…
आगे बदलाव की कोशीश करुंगा…
आपका आशीर्वाद यू ही बना के रखीये…
बहतु खूबसूरत कृष्ण ….आप जो कहना चाह रहे है ..उसको शब्दों में बांधने में उलझ गये ……….जिसे आप अच्छी तरह जानते है …………..!!
कृष्णजी…सुन्दर पर पहले की तरह लयबद्ध नहीं ये….
bhav me uttam hai apki rachana saini ji………….
बहुत खूबसूरत