एक तरफा प्यार
अरूणोदय से अस्ताचल दिवस रवि से फलता हैसमय का यह कारवां यूं ही अनवरत चलता हैदिल में हजारों अरमां लिए बैठे हैं ऐसी कश्ती मेंदेखते हैं मांझी डुबाता है या पार ले चलता हैयूं तो मिलते हैं दुनियां में कई जाने-अनजानेयह दिल कभी-कभी ही किसी के लिए मचलता हैरोशनी के लिए जलते तो हैं तेल और बातीकहने वाले कहते हैं देखो दीपक जलता हैसिलसिला पैगामों का चलता ही चला लेकिनमजा तो तब है जब उधर से भी जवाब मिलता हैसोचा बन्द करूं लिखना उनकी बेरूखी देखकरफिर भी जाने क्यूं कलम खुद ब खुद ही चलता हैअब तरस गए हैं हम उस अनाम अहसास के लिएउस अपनापन का कहीं कुछ तो मतलब निकलता हैजमाना तो रंग दिखाता है यूं मौसम के साथक्यों अपना हमदम भी इस तरह बदलता हैवो पूछते हैं यह मोहब्बत है या शायरी शायर कीयह काव्य प्रसून तो प्रेम-वाटिका में ही खिलता हैसंकेत दिया उन्होंने इस दोस्ती को प्यार ना समझनाएक तरफा प्यार ‘गोपी’ आखिर कितना चलता है
रामगोपाल सांखला ‘गोपी’
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behtreen bhaav sampreshan aapkaa………
Respected Sir,
Thanks.
behad behad umda………….gopiji………..
Dhanyawad Aapko
Bahut sundar…
Bahut bahut Dhanyawad Anu Ji. Aapki sarahana se likhne ki prerna milti hai.
Sunder bhaav……………………..
Dhanyawad Singh Saheb