गुलशन में चंद कलियाँ अभी भी बाक़ी हैं,ख्वाहिश वो उनसे मिलने की अभी भी बाक़ी है |जलाया था ये सारा शहर किसी ने कभी,शहर में राख औ दिल में आग अभी भी बाक़ी है |हर एक शै पे उठ चुकीं ज़माने की उँगलियाँ,बदनाम होना बस इक तिरा अभी भी बाक़ी है |मौसम बदल गए हैं तुमसे मिले हुए,जाड़े की धूप का मज़ा अभी भी बाक़ी है |अशआर तो लिखे हैं “आलेख” ने तमाम,ग़ज़ल जो मुकम्मल हो अभी भी बाक़ी है | — अमिताभ आलेख
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Achchi rachnaa Aalekh lekin tumharaa level kahin aur unchaa hai …………
शुक्रिया शिशिर जी.
काफी समय बाद समय दे पाया हूँ अपनी ग़ज़लों और गीतों को. प्रयास रहेगा की आगे आर बेहतर तौर से कह सकूं अपने जज़्बात.
धन्यवाद.
Amitabh jee sunder aur satik gazal bahut kam hi error hai baad baaki sab thik hai……..
Bahut sunder….
Aapki gajal padhkar Maine pratikriya de di,
Meri rachnaon par aapki najar abhi bhi Baki hai.
bahut khoob……….
लाजवाब
बहुत खूबसूरत अमिताभ जी …………..अंतिम शेर में सब कुछ कह दिया आपने …………………!!