फिर जीना सीख रही हूँ..जब मर्ज़ी हसना जब मर्ज़ी रोना,बिना कुछ कहे, अपने में ही खोये रहनान कोई दिखावा, न कोई छलावासिर्फ एक चेहरा बिना कोई नकाब।न कोई चिंता, न कोई डरतुझे बस उन्मुक्त रखना है अपना स्वर।जानती है तू बस दो ही रास,वात्सल्य और हास्य।माँ बनकर जाना मैंनेकितना बदल गयी मैं ,मैं भी तो ऐसी ही थी जब आयी थी इस संसार में,बिलकुल ऐसी ही,अब क्या हुआ मुझे,मेरा अस्तित्व मानों खो सा गया,हज़ारो सेकड़ो नकाबों के पीछे,बस यही कुछ पच्चीस – सताईस बरसो में।अभिव्यक्त हो प्रत्येक अनुभूति अबअभिलाषा ऐसी करती हूँ,मैं फिर वही बन जाऊ,दिल में जिंदादिली लिएनज़रो में लिए ख्वाब,ख़ुशी हो या हो गमहर लम्हे को जी जाऊ,फिर जीना सीख जाऊ।
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Sundar rachna….
Thanks a lot Anu ji
Maa ke tyaag ko aatmsaat karti or jeevan me bin bandhan ki soch ko rekhankit karti achchi rachnaa.
Thank u Shishir ji..
Maa ke roop main bhaavnaon ka sundar chitran……….
Thank you so much..
समस्त माताओं को मातृ दिवस की बधाई. माँ पर लिखी सभी रचनाएँ भावपूर्ण होती हैं अतः सभी खूबसूरत एवं सराहनीय हैं.
Thank you vijay ji
Well done suju… beutifully written and expressed… love u
Thank you so much dear