अभिमान का चेहरा तो देखो कैसे चमक उठा है जो रो रहा था कल गुरुर उस पर चढ़ रहा है, ढूंढता था गलतियां जो खुद में, आज उंगलिया उठा रहा है ,
अभिमान का चेहरा तो देखो…
तरस रहे थे आवाज को जिनके, सुर देखो छेड़ रहा है , कल्पना ना की थी कभी कटाक्ष वो भी बो रहा है ,
अभिमान का चेहरा तो देखो…
बदल दिया खुद को ही ऐसा साबित करना कुछ चाहा था , ऊँचा उठने के चक्कर में घाव अपनों को पहुचाया था , कह दिया सब कुछ, भीतर जो भी आया था, सोच कर बोलने वाला भी लगाम छोड़ कर आया था |
अभिमान का चेहरा तो देखो….
कुछ यूँ इठ्ला गई ज़िन्दगी, मुँह चिढ़ा कर कह गयी , इंतज़ार करके क्या मिला ? शर्मिंदा करके पल गया…. जो सो चला वो खो चला, जो बदल गया वो मर गया |
अभिमान का चेहरा तो देखो….
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बहुत ही सूंदर रचना…………………
khoobsoorat……par aap koshish keejay ek do rachnaayein likhein…taaki oron ki rachnaayein padhne ka mouka mile or ham aap ki rachna roz padh sakein…or aap apne vichaar bhi de sakein oron ki rachnaaon par………