Homeअंजना संधीरहम से जाओ न बचाकर आँखें हम से जाओ न बचाकर आँखें अशोक धर अंजना संधीर 11/02/2012 2 Comments हम से जाओ न बचाकर आँखें यूँ गिराओ न उठाकर आँखें ख़ामोशी दूर तलक फैली है बोलिए कुछ तो उठाकर आँखें अब हमें कोई तमन्ना ही नहीं चैन से हैं उन्हें पाकर आँखें मुझको जीने का सलीका आया ज़िन्दगी ! तुझसे मिलाकर आँखें। Tweet Pin It Related Posts अमरीका हड्डियों में जम जाता है ज़िंदगी अहसास का नाम है सभ्य मानव About The Author अशोक धर I am Hindi poem lovers and publish poems at hindisahitya.org 2 Comments A K Bhargava 31/01/2013 उपरोक्त रचना में लगता है आँखें पाकर आँखों को लुफ्त आ गया आँख जब लग गई आँखों से सपनों को सुख पाना आ गया सुंदर विचार Reply सुधीर कुमार सोनी 23/07/2013 बहुत सुंदर | http://srishtiekkalpana.blogspot.in/ Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
उपरोक्त रचना में लगता है आँखें पाकर आँखों को लुफ्त आ गया
आँख जब लग गई आँखों से सपनों को सुख पाना आ गया
सुंदर विचार
बहुत सुंदर |
http://srishtiekkalpana.blogspot.in/