** ऐसे रिश्ते ** एक लड़के की, एक लड़की सेएक मर्द की, एक ग़ैर औरत सेअगर बेसाख्ता गहरी दोस्ती होती हैअगर बेसाख्ता सखा-सखी होती है;अगर उनमें हंसी-मजाक होते हैंमान-मनौव्वल व तकरार होते हैंअगर साथ-साथ खाते हैं, पीते हैंउठते-बैठते हैं, सोते हैं, जागते हैं;ऐसे रिश्ते अक्सर, छुप-छुप कर बनाये जाते हैंकच्चे धागे से जुड़े, कमजोर व लाचार होते हैंअक्सर ऐसे रिश्ते रुस्वा होते हैं, दुःख दे जाते हैं- जब, ऐसे रिश्ते बेक़ाबू होकर दाग़दार हो जाते हैं।ऐसे रिश्ते सेलेब्रेटरीज में पनपें तो, चटखारी खबरें बन जाती हैंकमाने वालों में हों तो लिव-इन-रिलेशन कहलाती हैं;जिस समाज में कभी फोटो, या मैसेज पकड़े जाते हैंउसकी निगाह में, ये कत्तई अच्छे नहीं समझे जाते हैं।ऐसे रिश्ते जब खुल जाते हैं या बिगड़ जाते हैंथाने में बड़ी मुश्किल से जा पाते हैंजज साहब कोई सजा नहीं दे पाते हैं। हांइस्लामी कानून में तो है, ऐसों पर कोड़े बरसाए जाएंबेवफाई हो जीवन-साथी से, तो संगसार किया जाए, परइसके हिमायती कट्टर व दकियानूस बतलाए जाते हैं।(संगसार: निर्णय होने के बाद, सार्वजनिक स्थान पर पत्थर फेंक-फेंक कर मार डालना।) …. र.अ. bsnl
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samaaj dwaaraa banaae gaye bahut se niyam nihaayat hi avaigyaanik hain. manushy nature se hi polygamous hai lekin samaaj ne monogamy ke apne niyam us par thope hue hai. jahan bhi do vipreet lingon ke praani honge vahan aakarshan or usse aage bhi hona swabhavik hai. lekein kunthit logon ne jisme main bhi shaamil hun usko sahi dishaa dene ki bajaay paththar maarne ke niyam ijaad kar lie.
Kisi bhi samaaj me vyapt is tarah ki avaigyaanik soch galat hai chahe vo ksisi bhi roop me ho.
Sir,
Your comments are highly valued and are having merits of super level.
But in order to keep the society in disciplined mode,
enforcement of some regulatory ways are must-as I think.
Thanks for your reading and comments pl.
मनुष्य को प्राणियों में श्रेष्ठ माना गया है इसीलिए जीवन जीने के लिए एक समाज का निर्माण, कुछ नीतियां, कुछ परम्पराएं निर्धारित की गयी हैं. अगर हम उन दायरों को नहीं स्वीकारते तो हममे और एक जंगली जानवर में क्या अंतर रह जाएगा. बहुत खूब……….
विजयजी ने बहुत सुन्दर कहा है प्रतिकिर्या में……कुदरत एक नियम के अंदर रहती चलती है….यही हम को सिखाती है….सूर्य चाँद सितारे हवा पानी धरती सब एक अपने अपने नियमों में बंधे चलते हैं….इनमें से एक की हलकी सी नियम के विरुद्ध हलचल हमारी तबाही का कारण बन जाती है….इस लिए इंसान कुदरत के बनाये नियमों में ही चले तो अच्छा है उसके लिए………
Vijay Kumar ji Shukria
for reading and kind comments pl.
CM Babu ji
Very -Very thanks
aap kuchh guni jan hain jo
achchha hausala aafjaai karte hain.
सभी गुणीजनों ने बहुत अच्छे अच्छे स्पष्टीकरण दिए है जो तर्क संगत है ………इस परिपेक्ष्य में मेरा मानना है कि जैसा कि प्रसिद्ध समाजशास्त्री ” अरस्तु ” जी ने कहा था की “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ” इस वक्तव्य में अपने आप में समाज की परिभाषा व्याप्त है ……….. समाज में जो भी नियम, कायदे या कानून बनाये जाते है वो सर्वहित और मनुष्य की श्रेष्ठता को बनाये रखने और सामाजिक संतुलन को व्यवस्थित रखने के लिए किये जाते है ..इसी संदर्भ में कहा गया है की “समाज से बाहर रहने वाला व्यक्ति या तो ईश्वर है या भगवान” अत: मानवता के लिए ही धर्मो को स्थापना की गयी है ! इसलिए मानवता सर्वोपरि है ! यदि मनुष्य अपने लिए बनाये गए अपने निजी स्वार्थ के लिए नैतिक मूल्यों का हनन करता है तो उसके परिणाम भी उन्हें ही ग्रहण करने होंगे, वो अलग विषय है की वो अच्छे भी हो सकते है या बुरे वो उसके कर्म और विचारशीलता पर निर्भर करते है !
Nice creation
Niwatiya ji aur Mnoj Kumar ji
Thanks for reading and your kind comments pl.