गलत कानून या उसका प्रयोगनिर्भया केस में ऐतिहासिक फैसला देतें हुए जंहा कोर्ट ने लोगो में न्याय और समाज के प्रति सवेदनाओ को मूल्य को बरकरार रखते हुए भारतीय कानून व्यवस्था को सवालिया निशान के दायरे से बहार लाते हुए लोगो में इसके प्रति सम्मान और आस्था को बनाये रखने में सफलता प्राप्त की है उसी के साथ-साथ आज समाज में एक नई बहस को भी बल मिला है जो कई मायनो में उचित भी और महत्वपूर्ण भी !यह बहस का मुद्दा इसलिए भी है की एक कुकृत्य और जघन्य अपराधी जुनवाइल का सहारा लेते हुए अपने अक्षम्य अपराध में उसका लाभ लेते हुए सवंय को तो बचा गया मगर समाज के सामने एक ऐसा प्रश्न छोड़ गया जिस पर विचार अवश्य किया जाना आवश्यक है !वर्तमान समय में तेज़ी से आये परिवर्तन ने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी पहचान दर्ज कराई है जिसमे, प्राकृतिक, सामाजिक, व्यक्तिगत और मानसिक परिपक्वता सभी शामिल है, इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए की बीते दशकों की अपेक्षा शिक्षा के बढ़ाते कदम और जागरूकता के साथ साथ वर्तमान दौर में बच्चे की मानसिक और शारीरिक परपक्वता में भी काफी बदलाव और विकास हुआ है ! यदि हम इस बात का आकलन करे तो समझ में आता है की सत्तर – अस्सी के दशक में जो समझ बच्चे को दस से पंद्रह वर्ष की आयु में आती थी उतनी समझ और परिपक्वता आज पांच से दस की आयु में देखने को मिलती है !यदि आज हम इतने आगे बढ़ गए है तो फिर निर्भया जैसे मामले में मात्र कुछ दिनों के अंतर की वजह से अपराधी को जुनवाइल का लाभ देकर उचित सजा के भागीदार से बचा लिया गया जबकि इस प्रकार के मामले व्यक्तिगत और निजी तौर पर यदि राय ली जाये तो चाहे वो न्यायधीश हो या कोई साधारण व्यक्ति इसमें माफ़ी की कोई गुंजाइश नहीं मानता !अब विषय यह आता है की यदि इसी तरह राजनितिक लाभ या अन्य निजी पहुँच का लाभ उठाते हुए ऐसे अपराधों को नजर अंदाज किया जाता रहा तो, ऐसी घृणित मानसिक सोच रखने वाला प्रत्येक युवा जब तक लिखित दस्तावेजों के अनुरूप अठ्ठारह का नहीं हो जाता किसी भी प्रकार के अपराध के लिए स्वंय को बाहुबली मानता रहेगा इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता !गौरतलब हो की यंहा प्रश्न यह नहीं की मृत्युदण्ड ही विकल्प हो, अपितु विषय की गंभीरत को समझते हुए इस विषय पर अवश्य विचार किया जाना चाहिए की इस प्रकार के अक्षम्य अपराधों के लिए कानूनी दांव पेंच न लगाकर उचित समाधान के कुछ ऐसे परिवर्तन किये जाए की इस तरह के अपराधों के प्रति लोगो में एक भय हो जिससे इनकी संलिप्तता पर अंकुश लगाया जा सके !अब प्रश्न या उठता है की इस प्रकार के मामलो का हल क्या हो और कैसे इनको संभालने के प्रयत्न किये जाए इसके लिए आवश्यक है की प्रत्येक व्यक्ति को अपने आप से शुरुआत करनी होगी और सुदृढ़ सकारात्मक सोच के साथ आपने आसपास के माहौल पर नजर रखी जाये, अपने सम्पर्क में आने वाले हर एक व्यक्ति को जागरूक किया जाये, असंवेदनशील लोगो को इसके प्रति जागरूक कर उन्हें अच्छे बुरे के अहसास के साथ उनकी मनोदशा के अनुरूप उन्हें समझाने का प्रयास किया जाये !अंत में सबसे महत्वपूर्ण यह है की क़ानून व्यवस्था को मजबूर न बनाकर कुछ अधिकारों के साथ और सक्षम बनाया जाये जिससे कम से कम, इस प्रकार की घटनाओ को वो अपने विवेक से संज्ञान में लेकर समाज को एक अच्छा सन्देश देकर एक अच्छा माहौल और विश्वश्नीयता के भाव पैदा कर सके ! किसी प्रकार की साजनीति का शिकार न होकर दांव पेंचो से दूर निष्पक्षता से आमजन के हितो की रक्षा करने में सक्षम हो सके !
लेखक :- डी के. निवातिया
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Nivatiya ji aapka mat tarksangat hai. Lekin meraa manna hai ki is tarah ke apraadhon me kami lane lie v insaani paashviktaa par lagaam lagaane ke lie naitik shikshaa kaa sudhrikaran hi uchit uppay hai.
Thanks for your valuable comments SHISHIR JI.
अत्यन्त गंभीर ,सोचनीय और संवेदनशील विषय
अति सुंदर
Thanks for your valuable comments MANOJ
aap ne theek likha hain bahut sunder
Thanks for your valuable comments ARUN
आपसे शत प्रतिशत सहमत हूँ मैं….मुझे लगता हल जो आपने अंतिम दो पद में दिया मेरा भी वही मत है…..
Thanks for your valuable comments BABBU JI.
मैं शिशिर जी के मत से पूर्णतया सहमत हूँ. अगर बचपन से ही बच्चों में उचित समझ और सोच विक्सित करेंगे तो निश्चय ही ऐसे अपराधों में कमी आएगी. व्यापारियों के हाथों में शिक्षा जाने से नैतिकता बिलकुल समाप्त ही हो गयी है. आपने अच्छा प्रसंग उठाया है.
Thanks for your valuable comments VIJAY JI
शर्मा जी ,शिशिर जी और विजय जी ने तर्क सम्मत बात कही है औरआप के मन में उठे प्रश्न और उनके उत्तर भी। शिक्षण पद्धति में नैतिक शिक्षा का समावेश होना ही चाहिए ।
Thanks for your valuable comments MEENA JI.