कभी-कभी खुद से बातें करना अच्छा लगता हैचलते चलते फिर योहीं ठहरना अच्छा लगता है ||जानता हूँ अब खिड़की पर तुम दिखोगी नहींफिर भी तेरी गली से गुजरना अच्छा लगता है ||शाख पर रहेगा तो कुछ दिन खिलेगा तू गुलतेरा टूटकर खुशबू में बिखरना अच्छा लगता है ||आईने तेरी जद से गुजरे हुए जमाना हुआआजकल नज़रों में सँवरना अच्छा लगता है ||जानता हूँ चाँद का घर है फलक के पास परचांदनी का जमीं पर उतरना अच्छा लगता है ||
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अति सुन्दर……..
बहुत बहुत शुक्रिया शिशिर जी।
बेहद उम्दा ……………………
bahut bahut shukriya..
Very nice…
Shukriya Anu ji….
shivdattji….khoobsoorat shabdon ka jaadu….behad umda…….
aapka bahut bahut aabhar, hausala badhane ke liye..
बेहद खूबसूरत रचना शिवदत्त जी………..
bahut bahut shukriya Kajal ji..
ATI SUNDR
shukriyA Nivatiya ji.