Homeजिगर मुरादाबादीइश्क़ को बे-नक़ाब होना था इश्क़ को बे-नक़ाब होना था विनय कुमार जिगर मुरादाबादी 24/03/2012 No Comments इश्क़ को बे-नक़ाब होना था आप अपना जवाब होना था तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं हाँ मुझी को ख़राब होना था दिल कि जिस पर हैं नक़्श-ए-रंगारंग उस को सादा किताब होना था हमने नाकामियों को ढूँढ लिया आख़िर इश्क कामयाब होना था Tweet Pin It Related Posts कब तक आख़िर मुश्किलाते-शौक़ आसाँ कीजिए पाँव उठ सकते नहीं मंज़िले-जानाँ के ख़िलाफ़ याद About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.