मेरी खातिर कर देती है, इच्छाओं की क़ुरबानी जान से ज्यादा मुझको प्रिय, जन्नत जैसी घरवालीमेरी खातिर……………………………………………………… जैसी घरवालीकभी जो गुस्सा करती है तो, उसमें भी है प्यार भरा होती ही तकरार कभी तो, उसमें भी है प्यार छुपा मैं चिढ़ाता रहता हूँ, दानिश्ता बातों बातों मैं जब तक उसको ना सताऊँ, ना मजा है बातों मैंमुँह बनाकर टेढ़ा मेढ़ा, कह देता पहले सोरी वो हँस जाती रोते रोते, मीठी सी झप्पी देती मेरी खातिर……………………………………………………… जैसी घरवालीननद देवर को भी पढ़ाया, उनका भार उठाती वो बेटा बेटी समझ के उनकी, इच्छा पूरी करती वो मुझे दवा दिला देती है, जमा किये पैसे से वो तुम खुश हो तो मैं खुश हूँ, इतना कहकर हँस जाती वो मेरे लिए जगे सारी रात, संग जग के साथ मेरा देती तुम नही हो बीमार मैं हूँ, ये कह के दिल बहला देती मेरी खातिर……………………………………………………… जैसी घरवालीकभी कामना है नही अच्छी, साड़ी और कोस्मेटिक की गये एक दिन करने शोपिंग, दिल्ली संग मैं दोनों जी मेरे लिये बच्चे नन देवर, के लिए खरीदा जी बचे नही फिर पास पैसे, हो इतनी गयी शोपिंग जी अब बारी थी उनकी ना, डेबिट ना क्रेडिट कार्ड चला अपने लिये ना कुछ खरीदा, बोली बहुत है शोपिंग जी मेरी खातिर……………………………………………………… जैसी घरवालीमैं देख रहा था टूटी पायल, और टूटे झुमकों को जी जो ना बदले हैं अभी तक, हो गये हैं छः महीने जी कभी ना बोली अब तक मुझसे, दो इन्हें बदलवा जी और ना इच्छा डिनर लंच की, बोली घर खुश चहिये जी अपने बड़ों का आदर करती, छोटों को स्नेह भी लड़ी ना झगड़ी किसी से हो, शादी को गयी दस साल जी मेरी खातिर……………………………………………………… जैसी घरवाली“मनोज कुमार”
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bhut sundar git Manoj ji apki……….. ptni ko samrpit…
Dhanyavad Madhu Ji
बहुत खूबसूरत मनोज…………..!!
Thanks nivatiya ji