मेरे ख्वाब कभी जो पास तुम्हारे आते चुपके से उनको तुम अपने पास सुलाते धूप शहर की तेज बहोत थी फिर भी हम बच जाते गर तुम गगरी में मीठा पानी भर ले आते होता ऐसा प्रेम पखेरू कभी न उड़ने पाते गर तुम अपनी छत पर दाना इन्हें चुगाते कितना अच्छा होता के ये गीत कभी न रोते कभी समय जो पड़ता तो भाव हँसाने आते सारी बाधाये जीवन की इक पल में मिट जाती बस तुम मेरा हाथ पकड़ क़दमों से कदम मिलाते मेरे ख्वाब कभी जो पास तुम्हारे आते।।
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आशीषजी….बहुत ही सुन्दर…….
बहोत बहोत आभार आपका
bhut khoobsurat rachana awasthi ji………..
Bahot bahot Shukriya Madhu JI
उम्दा रचना आशीष जी………….
बहोत बहोत आभार आपका
सूंदर भावों में रचित……
मेरी रचनाओं को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
धन्यवाद विजय जी। . बिलकुल पढता हूँ
अति सुन्दर सरल शब्दों में सजे भाव बहुत ही खूबसूरत है
बहोत बहोत आभार आपका
bahut achhey ashish jee…
Dhanywaad Sharma ji
Bahut hi sundar rachna….
बहोत बहोत आभार आपका Anu Ji
wah!wah!bhut khoob apne likha hai.
Bahot bahot dhanywaad anjali ji