मेरे अन्दर का सच मुझसे है कहतातू जैसा है वैसा ही क्यों नही रहतातू मुझसे खफा है या मजबूर है तूया दुनिया के चक्कर मे मुझसे दूर है तूजानता हूँ सूरज है सर पर चढ़ासब्र रख अभी दोपहर है शाम तक धूप ढल जाएगीदोस्ती ह्वाओं से करने से क्या फ़ायदानर्मी मौसम मुताबिक सुर्ख हो जाएगीबहने दे इनको तू क्यों है बहकातू तो विपरीत धार के है बहता(आनन्द)
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bhut khoob aannd ji……………….
anand jee achhi rachna hai
Aapne apne andar ke rebel ko shabd done kaa achcha prayaas kiya hai.
nice anand ji…..
Very nice…
Achhi koshish………
खूबसूरत….
बहुत खूब…
मेरी रचना “चला हूँ ढूंढने गजल..” पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
अति सुन्दर ……………!