तुम डाले डोरा दिल पर कब्ज़ा किये बैठी होरातों दिनों न कुछ भिन्न नींदें उड़ाये बैठी होहम जान है तुम्हारी तुम जान हो हमारीमहबूब, जान, प्रिय बस तुम ये कहती रहती होकवि – मनुराज वार्ष्णेय
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nice lines……………………………….
बहुत बहुत आभार ….
Nice expression……………………….
धन्यवाद सर ….
बहुत खुबसुरत भाव मनु …..मुझे शब्द संयोजन के तालमेल में थोड़ा सा अभाव लगा इन्ही शब्दों को थोड़ा सा परिवर्तित करके रखेंगे तो भावो में माधुर्त्या आ जायेगी !
धन्यवाद निवातीया जी ……
आपके हिसाब से इसमें क्या परिवर्तन हो सकता है
bhaw bahut ahhey hai bazar mein chal jayega.
Bindeshwar ji…..
आपकी दूसरी पंक्ति का आशय नही समझ पाया
jaise nivatiyaji ne kaha…..usko amal keejay….
अवश्य babucm जी …..