कभी गम था कभी खुशी थी। पता नहीं किस बात की बेबसी थी।।कभी आंसू थे आंखों में कभी चेहरे पर हंसी थी। पता नहीं किस की याद मन में बसी थी।।हजारों की भीड़ में बस एक ही चेहरा दिखता था। पता नहीं अभी तक उसकी परछाई पीछे पड़ी थी।।महफिलों में आज भी लोग मुस्कुराते थे। पता नहीं मैं ही क्यों गम मैं डूब जाता था।।मुकद्दर से मुकद्दर रूठ जाते हैं।पता नहीं जो चलते संग हमसफ़र वह क्यों छूट जाते हैं।।अब क्यों कलम से कुछ लिखने का मन करता है। पता नहीं पर यही शायद गम से निकलने का रास्ता है।।जब भी गोरे कागज पर कुछ लिखना चाहता हूं। पता नहीं क्यों उसी का नाम लिख जाता है।।सुबह निकलता शाम को घर आता हूं। पता नहीं किस बात का उत्तर ढूंढने जाता हूं।।सोचा कुछ पीकर ही गम बुलाता हूं। पता नहीं पीने के बाद क्यों उसी के सपनों में खो जाता हूं।।उसकी राह तकते तकते सुबह से शाम हो जाती है। पता नहीं किसी से बिछड़ने के बाद जिंदगी बेरंग हो जाती है।।प्यार हमेशा खुशी ही नहीं देता है। पता नहीं था जिंदगी में गम भी भर देता है।।सपने बिखर जाते हैं दिल टूटने के बाद। पता नहीं क्यों हिम्मत टूट जाती है अपनों से बिछड़ने के बाद।।वक्त ने अजीब करिश्मा दिखा दिया। पता नहीं दीवाना बना दिया या शायराना बना दिया।।कुंवर शिवम्
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sundar…………
Dhanyawad apka
viyog warnan ………..sundar bn pda hai………….
Dhanyawad apka
Very nice………………………
Dhanyawad apka
ह्रदय के भावो को षण्डो में बाँधने का अच्छा कार्य !
Dhanyawad apka
bahut khub shivam jee. wah….
Dhanyawad apka
बहुत ही खूबसूरत रचना…… सुंदर भाव……
Dhanywad ab ka