जिन्दगी संग जुआ
जिन्दगी के संग जुआ खेलता हूँ ,रोज़ एक नया तजुर्बा झेलता हूँ ,नीचता की भी परिसीमा होती हैनेकी के नाम बदी करते देखता हूँ ।।
डी के निवातिया…….????
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Waise to jindagi hi juye ke dav par lagi hai , par aapne ek naya tajurwa samne la kar rakh diya hai…… bahut achhey ………….dunder pankti………..
आपकी अमूल प्रतिक्रिया का बहुत बहुत धन्यवाद बिंदु जी !
रचना भी बहुत सुन्दर हैं, भाव भी बहुत अच्छे हैं. एक रिक्वेस्ट हैं शब्द “कमीनेपन” बदलें तो रचना ज्यादा खूबसूरत लगेगी. अगर आप भी ऐसा महसूस करें तब.
बहुत बहुत धन्यवाद विजय आपका ……. कुछ घटनाक्रम ऐसे होते है जो ह्रदय और मस्तिष्क दोनों को मजबूर करे देते है या यूँ कहे की दोनों की समझ से ऊपर निकल जाते है तब अक्सर ऐसे भी भाव पैदा होते है ! … आपके सुझाव के अनुरूप हमने पूरी पंक्ति ही बदल दी है आशा है भाव सम ही रहे ………एक बार पूण: धन्यवाद आपका !!
Beautiful….Nivatiya ji…
Hearty Thanks ANU JI…………..!
ये तो बहुत अच्छा कर दिया आपने. बहुत सुन्दर……………
Hearty Thanks VIJAY JI…………!
कलयुग में यही हो रहा है
बहुत बहुत धन्यवाद आपका शिशिर जी !
U r right sir ,……………..good thought.
बहुत बहुत धन्यवाद आपका SHYAM!
यथार्थपरक भाव ….. … ,आपकी रचना मर्मस्पर्शी है निवातिया जी ।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका मीना जी !
बहुत कुछ ऐसा होता है जो बर्दाश्त से बाहर हो जाता है….इंसान कभी कभी असमर्थ पाता है बदलने में… साथ नहीं मिलता या सब हम जैसे नहीं सोचते… तो उससे मन में खीज…वेदना…बेबसी… सब आता है… आप की रचना ऐसी ही है….और आप जिस ढंग से भावों को पिरोते हैं कमाल है बस…….
सत्य कहा आपने आपके वचनो से पूर्णतया सहमत हूँ भावो के समझने के लिए ह्रदयतल से आभारी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका बब्बू जी !!
Nice,,,,,,,,,,,
तहदिल से शुक्रिया आपका किरण जी !
Sundar bhav hain Nivatiyan JI
तहदिल से शुक्रिया आपका किरण जी !
बहुत ही खूबसूरत……. निवातिया जी…….
तहदिल से शुक्रिया आपका KAJAL JI.