IIछंद – उल्लालाIIभावों से था भर उठा, नयन में पर नीर नहीं Iकहते बात बने नहीं, न कहने में धीर नहीं IIभाव सागर के दिल के, जाने प्यासी नदिया Iकलकल करे वो तड़पे,आ मिले सागर नदिया II\/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)(एक प्रयास आपकी नज़र…मेरी समझ में जो आया १३ मात्रा ११ पे लघु ज़रूरी…आपकी अमूल्य प्रतिकिर्या का अभिलाषी..)
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
Babbu Ji. Bhaav kaa saagar dil me jyaadaa behtar lagegaa. Bhaav to bahut achche hain par pataa nahin kyun padhne me atkaan hai.
आपने उल्लाला छंद की रचना की यह उपलब्धि है. रही बात त्रुटियों की तो पहले छंद में सबकुछ नहीं तलाश सकते हैं. जब कुछेक और लिखेंगे तो अपने आप ही बहाव और मात्राएँ बैठने लगेंगी. सुन्दर रचना.
मधुकरजी….मैंने ‘सागर’ के दिल के भावों की बात की थी यहाँ…स्पष्ट करने हेतु मैंने चेंज किया है…आप का तहदिल आभार…नज़र करियेगा…फिर से…
Ab bahut achcha laga padhkar……..
तहदिल आभार आपका…….मधुकरजी….
विजयजी….आप शत प्रतिशत सही कहते हैं…..तहदिल आभार आपका……….
जिसका प्रयास ही इतना उम्दा हो उसकी लेखनी के क्या कहने ………विजय जी के कथन से सहमत हूँ ………..! वैसे तो इस छंद के बारे में ज्यादा जानकरी नहीं है अपितु थोड़ा सा कहीं कुछ पढ़ा था की इस छंद की स्वतंत्र रूप से कम ही रचना की गई है। वीरगाथा काल में उल्लाला तथा रोला दोनों के समन्वय से ही छप्पय नाम की रचना किये जाने से इसकी प्राचीनता प्रमाणित होती है।
बहुत बहुत बेहतरीन बब्बू जी …आप एक कुशल साहित्यकार है …यह प्रमाण है ……..आपकी कुशलता लेखनी की जय हो !
नतमस्तक हूँ आपके प्रसाद स्वरुप वचनों से…..मेरा प्रयास आपको पसंद आया वही बहुत है मेरे लिए….साहित्य ज्ञान तो दूर की बात मुझे भाषा का पूरा ज्ञान नहीं है….. सच कह रहा हूँ….आप सब गुणीजन की रचनाओं से ही कुछ सीखने की इच्छा जागी है…बस… कोशिश कर रहा हूँ…आपका मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है मेरे लिए….तहदिल आभार आपका….Nivatiyaji….
उल्लाला मे दोहा औऱ रोला छंद का मिस्रन होता है शर्मा जी,ये सिर्फ दोहे हैं ,मेरी जानकारी के अनुसार, वैसे आपका भाव सुन्दर है।
मधुजी…दोहे जो प्रचलित हैं वो १३-११ विषम-सम के हैं….और भी दोहे हैं पर उनमें मात्रा १३-१३ की नहीं जैसे मैंने ये उल्लाला लिखी है….हो सकता आप सही हों क्यूंकि मुझे ज्ञान नहीं है….आप के मार्गदर्शन की भविष्य में भी आशा रहेगी मुझे…..तहदिल आभार आपका….
शर्मा जी बेहतरीन रचना ……, ,अनुपम लेखनी ……,आप के कुशल प्रयास की जय हो ! वास्तव में आप एक श्रेष्ठ साहित्यकार हैं।
नतमस्तक हूँ आपके प्रसाद स्वरुप वचनों से…..मेरा प्रयास आपको पसंद आया वही बहुत है मेरे लिए….साहित्य ज्ञान तो दूर की बात मुझे भाषा का पूरा ज्ञान नहीं है….. सच कह रहा हूँ….आप सब गुणीजन की रचनाओं से ही कुछ सीखने की इच्छा जागी है…बस… कोशिश कर रहा हूँ…आपका मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है मेरे लिए….क्यूंकि आपकी लेखनी ऐसी है जिस से सच में मुझे जलन होती….हा हा हा….वो इस लिए की मैं ऐसा क्यूँ सोच और लिख नहीं पाता…जबकि पता है मुझे इस जन्म संभव नहीं है….तहदिल आभार आपका….Meenaji…
sundar panktiya sir.
तहदिल आभार….anjaliji….
बहुत ही खूबसूरत……. क्या बात है……
तहदिल आभार…..Kaajalji….der se hi…aaye to….hahahahaha