धूप छाँवहै आज मुझमें सामर्थ्य खड़ा हूँ पैरों पर अपने इसलिए तुम रोज ही आते हो मेरे घर मेरा हालचाल पूछने।बाँधते हो तारीफों के पुल आज बात-बात पर।किंतु मैं अपने अतीत को अब तक नहीं भुला पाया हूँ।गर्दिश के उन दिनों में तुम दूज के चाँद बन बैठे थे घर पर रहने के बाद भी’नहीं है घर में कहलवा देते थे कैसे भूलूँ उन क्षणों को मित्र,जब तुम मुझे देख कर भी अनदेखा कर देते थे,यह सोच कर कि,शायद मैं तुमसे कुछ माँग ना बैठूँ।
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दुनिया में स्वार्थी लोगों की कमी नहीं ,,,विवेक जी ठीक कहा आपने
sahi kaha vivek ji apne………………
Very nice and true…Vivek ji….
waah…..aaj ke paripeksh mein…rishte sab swarth bhare hain…..bahut achha shabd sanyojan hai….behad khoobsoorat……..
Ye to kadvaa sach hai…….
वास्तविकता से परिपूर्ण सुन्दर रचना. आजकल स्वार्थ का गुण खूब चल रहा है.
क्या बात कही आपने………. सचमुच जीवन में
ऐसा ही होता है…… बहुत ही सुंदर……