झिलमिल चाँदनी रात की,भोर की लालिमा बन जाती ।नींद कारवां से भटकी मुसाफिर,बन्द दृग पटलों में भी नही आती ।चँचल हठीली जादूगरनी,कितनी मनुहार कराती ।घर से निकली सांझ के तारे संगभोर के तारे संग छिप जाती । ××××× ‘मीना भारद्वाज’
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neend kaa vishesh paristhitiyon me behad sundar chitran Meena Ji…….
Thanks a lot Shishir ji .
Neend ka khubsurat varnan………………bahut sunder.
Bahut bahut dhanywad Vijay ji .
Lovely creation MEENA Ji as ever….
Thanks a lot Nivatiya ji .
Bahut sundar…Meena ji…
Bahut bahut dhanywad Anu ji .
nice………………… bhut khoobsurat meena ji……….
Bahut bahut dhanywad Madhu ji .
वाह….क्या बात है….नींद तो यादों के कारवां में भटक गयी तो चाँदनी रात सी यादें …कब सुबह हुई पता नहीं चलने देती…..आँखें लाल भोर की लालिमा से होती तभी पता चलता की जादूगरनी है नींद…कितना मनुहार करो मानती नहीं उलझा देती है….भोर कब होती नहीं पता चलता….ज़िन्दगी कुछ ऐसी ही है अमूमन…. कमाल की सोच कमाल की रचना…..
आप की अनमोल प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से धन्यवाद शर्मा जी ।
बहुत ही सुंदर शब्दों में पिरोया आपने नींद को……………
……… बेहद खूबसूरत…… मीना जी…..
Hardik dhanywaad Kajal ji