जिससे कूजित कलयुग कल -कल है इस जग में तो धन ही बल हैजीवन-संचारी ये रक्त है इसके बिन हर जीव मृतक है वही स्थिति धन-हीन मनुज की जल बिन यथा जल्द निर्जल है इस जग में तो धन ही बल हैइसका लोभी बन कर मानव हो जाता है निश्चय दानव मानव को मानवता से च्युत कर सकने में यही सबल है इस जग में तो धन ही बल हैइसके हेतु सभी रिश्ते हैं इस के खातिर सब बिक सकते हैं कोई बली नहीं इस जैसा इसके सम्मुख सब निर्बल हैं इस जग में तो धन ही बल हैलक्ष्मी का यह अपर-रूप है माया का यह अंध – कूप है इससे निकल न सकता कोई लोभ -मोह का यह दल-दल है इस जग में तो धन ही बल हैबन बैठे इसके चेरे हम नाचें सब जगती मरकट बन कोई कर ही क्या सकता, जब मानव-मन ही चंचल है इस जग में तो धन ही बल है
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sahi kaha aapne….aaj kal maaya ka hi khel hai…
‘मानव-मन ही चंचल है
इस जग में तो धन ही बल है’
bahut achhi rachana hai aapki.
samarthan ke liye aabhaar
Dr.Sushil lagtaa hai aap ki bhaavnaaen bhi dhan bal vaale pashuon ne kaafi aahat ki hain. Isko sweekar karnaa seekh lo bhaai. Yug yug se Diwali manaane vaalon ki hi sankhyaa jyaadaa rahi hai. Vasant panchmi kitne log manaate hai yaa vaastav me enjoy karte hain.
aapki tippani sar aakhon par
Truely said…………………..beautiful.
puraani kintu pehli bar kisi forum me prakashit
Good thought in current scenario..like as KALYUG.!!
pandrah saal se bhi pehle likhi balyakaal rachna
aaj bhi prasangik
anugraheet hun
bhut khoobsurat kavita hai vimal ji apki………
sa-hriday dhanyawaad
अति सुंदर………….