अंतस मन अश्क बहुत दूर की याद दिलाती हैखुद तड़पती हुई गालों पर आती है।दो अखियॉ सुख-दुःख की सागर हैममता और प्यार से भरी गागर है।मन सागर में ही खोया हैजो अंतस मन में बोया है।वह सागर अश्क वहा करकेमन का ही मैल धो देती है।जो छुपी रहती है चित्मन मेंवह आकर खुद रो लेती है।वह बहुत करीब से आती हैमन को जैसे छू जाती है।कोई रोता है कुछ खो करकेकोई पाकर रोता रहता है।कोई मजबूरी में रोते हैंकोई भय से रोया करता है।कभी अश्क निकलकर बहती हैकभी ऑखों में सुख जाती है।यह धैर्य-धैर्य की बात हैजो सांसो में रूक जाती है। बी पी शर्मा बिन्दु
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Sundar bhaav Bindu ji …………
thanks
bahut khoobsoorat………………
thank you very much
Lovely………………..!
thanks
सुंदर भाव…….. सुंदर रचना…..
bahut bahut sukriya