सोचो अगर ये रात ना होती, तो क्या होता lइंसा हर पल दो के चार, में ही लगा होता llदिल को सुकून, ना दिमाग को आराम होता lइंसा परेशा है जितना और ज्यादा परेशा होताllसोचो अगर ये सूरज ना होता, तो क्या होता lबिन सूरज धरती पर जीवन संभव ना होता llबिन सूरज पेड़-पौधे अपना भोजन न कर पातेlबिन पेड़-पौधों के फिर हम साँस भी न ले पाते llसोचो अगर ये पेट ना होता, तो फिर क्या होता lना कुछ खाना होता ना फिर कुछ कमाना होता llना इंसान दिन-रात की आप-धापी में यूँ खोता lफिर जब कुछ न होता, तो ये जीवन भी न होता llसोचो अगर इंसानियत, ना होती तो क्या होता lदया, धर्म, मानवता ,क्या होती है पता ना होता llलोग आपस में ही, एक दूजे से लड़कर मर जाते lफिर न यहाँ हम होते, ना ही यहाँ तुम रह पाते llदेखा जरुरी है हर चीज़, जिसे ईश्वर ने बनाया है lसब उसकी कठपुतली है ,सबको उसी ने नचाया हैll————-
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Bahut sundar rachna…Rajeev ji..
Thanx Anu ji
Bade khoobsoorat tareeke se aapne saty ko chitrit kiyaa Rajiv ji…..
दिल से आभार शिशिर साहब
Bahut hi badiya sabdo me apne likha hai.very nice.rajiv sir.
Thank u so much
NICELY DESCRIBE ………………….VERY GOOD
धन्यवाद निवितिया जी
Beautiful expression……………………………..
धन्यवाद विजय जी
bahut khoob……………
Thanx babbu ji
बहुत ही खूबसूरत………..
कविता साहराने के लिये धन्यवाद
bahut hi umda bhav rajeev ji……