तमस भरे अन्तर को मेरे असतो मा सद् गमयतमसो मा ज्योतिर्गमयमृत्योर्मामृतं गमयO Lord, Thou lead meFrom untruth unto truthFrom darkness unto lightFrom death unto divinity.00000 तमस भरे अन्तर को मेरेआलोकित तुम कर जावो।औ असत्य की आग बुझानेसत्य मेघ तुम बन जावो। जग में भीड़ बहुत है फिर भीकदम सभी के थके हुए हैंजो चलते हैं, गिर पड़ते हैंलाश वहीं पर बने पड़े हैं राह हजारों दिख पड़ती हैंदिशा नरक की दिखा रही हैपर वह राह कहाँ से पाऊँजो तेरा साथ दिलाती है पा जाऊँ गर वह पथ तो तुमपदचिन्हों से भर जावोऔर साथ तुम मेरे चलकरमुझ में साहस भर जावोतमस भरे अन्तर को मेरेआलोकित तुम कर जावो। चहूँओर जो कोलाहल हैउसमें पीड़ा चीख रही हैऔर सुबकती साँसों में छिपखामोशी खुद पे खीज रही है नहीं कहीं है गूँज खुशी कीगीतों के सुर भी गुमसुम हैंकरूँ प्रार्थना तन्हाई मेंजहाँ खिले बस शान्त कुसुम हैं वसंत ऋतु-सा खिलूँ जगत मेंजीवन ऐसा कर जावोमुरझाये मन की कलियों मेंगंध नयी नित भर जावोतमस भरे अन्तर को मेरेआलोकित तुम कर जावो। हिंसा के ही पर फैलाकरउड़ते फिरते हैं मानव जनजख्मों की बारात सजायेझूम रहे हैं व्याकुल तन मन नहीं अलोकित कर पाती हैनन्हें दीपक की बातीआँधी तूफानों में घिरकरनाव नहीं है तट पर जाती व्यथित हृदय के कंपित सुर मेंगीत अनोखा भर जावोऔर सुखद स्मृतियों का स्पंदनहर साँसों में भर जावोतमस भरे अन्तर को मेरेआलोकित तुम कर जावो। ——- भूपेंद्र कुमार दवे 00000
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Beautifully written Bhupender JI
Beautifully written Bhupender JI bahut aacha likha hai
bahut khoobsoorat………….
behad sundar prarthana bhupendra ………