मेरी जिह्वा मधुर बनी हो जिह्वाया अग्रे मधु मे जिह्वामूले मधूलकम्____अथर्ववेद –1-34-2मेरी जिह्वा में मधुरता हो और जिह्वा के मूल अर्थात् मानस में मधुर रस का संनिवेश हो। 00000 मेरी जिह्वा मधुर बनी होऔर मूल में मधुरस होवाणी में तेरी वीणा केझंकृत होने का लस हो। अक्षर की महिमा क्या कहनाहर अक्षर है ब्रम्ह सरीखाइसको जिह्वा पर जब लावोब्रम्हा, हरि, शिव सब बन जाता। अक्षर का संसार विपुल हैजिससे जिह्वा बनी चपल हैअर्थ अनोखे बात निरालीकह जाता हर चंचल पल है। पर मन की वाणी अधरों परशोभित हो तो कुछ ऐसी होतेरी वीणा को झंकृत करप्यारी हो वह मधुरस सी हो।——- —- भूपेंद्र कुमार दवे 00000
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ati sundar bhupenddra …….
Sunder rachana…………..
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