सब अपनी-अपनी कहते हैं!
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- कोई न किसी की सुनता है,
- नाहक कोई सिर धुनता है,
- दिल बहलाने को चल फिर कर,
फिर सब अपने में रहते हैं!
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- सबके सिर पर है भार प्रचुर
- सब का हारा बेचारा उर,
- सब ऊपर ही ऊपर हँसते,
भीतर दुर्भर दुख सहते हैं!
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- ध्रुव लक्ष्य किसी को है न मिला,
- सबके पथ में है शिला, शिला,
- ले जाती जिधर बहा धारा,
सब उसी ओर चुप बहते हैं।