दुनिया की भीड़ में ,चली जा रही थी ,लोगो के बीच में ,खो सी गयी थी. ठहर से गए मेरे कदम, वो नजारा देख कर ,एक नजर देख रही थी ,मुझे मायूस हो कर.मै थी अजनबी उसके लिए ,था वो दर्द भरा पल मेरे लिए .हजारो सवाल थे ,उसकी तरसती निगाहों में ,जैसे ढूढ़ रहा हो मेरी आँखों में .मै आज भूखा क्यों हूँ,मै रोज भटकता क्यों हूँ. ?क्या कभी मेरी भूख मिट पायेगी ,क्या कभी मेरी माँ मुझे ,पेट भर रोटी दे पायेगी ..वो इतना मजबूर क्यों रहती है ,मेरे लिए वो उदास क्यों रहती है .मै ख़ामोशी से उसे देख रही थी , उससे नज़ारे मिलाने की कोशिश कर रही थी .मै उस नजर से, नजर न मिला पायी ,मै उसके सवालों के,जवाब न दे पायी …..अचानक उसके चेहरे पर ,एक मुस्कान आ गयी ,उसकी नजर एक तरफ मुड़ गयी..जहाँ से उसकी माँ ,उसको निहार रही थी ,हाथ में लिए रोटी को, आँचल से पोछ रही थी .उसकी नजरे यूं चहक सी गयी ,उसके उछलते कदमो की तस्वीर ,मेरी आँखों में रह गयी .. हमेशा के लिए ….आँखों में रह गयी ………..
अंजली यादव
kgmu (lko)
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आँखों में रह गयी … sundar bhaav
thanks a lot
acchi kosish aap………………….likhte rahiye…..
बहुत खूबसूरत …………………
bahut khub……………………………
behad khoobsoorat bhaav………….
Sundar rachna …Angel….
Very emotional pain filled observation……………
बहुत ही अच्छी रचना……….. ऐंजल जी….