मैंने एक ख्वाब देखा था, तुम्हारी आँखों मेंहक़ीक़त बन जाये मगर ये हो न सका ||एक कश्ती ले उतरेंगे समुन्दर की बाहों मेंकोई मोड़ न होगा फिर अपनी राहों मेंनीला आसमां होगा जिसकी छत बनाएंगेसराय एक ही होगी ठहर जायेंगे निगाहों मेंएक लहर उठाएँगी एक लहर गिराएगीगिरेंगे उठेंगे मगर एक दूजे की बाँहों में ||मगर ये हो न सका…चलना साथ मेरे तुम घने जंगल को जायेंगेकिसी झरने किनारे कुछ पल ठहर जायेंगेफूल, खुशबू, परिंदे और हवाओ का शोरमगर एक दूजे की साँसे हम सुन पाएंगेअम्बर ढका होगा जब पेड़ों की टहनियों सेकुछ रूहानी कहानियां आपस में सुनाएंगे ||मगर ये हो न सका…चलते साथ रेगिस्तान की उस अंतहीन डगरआदि से अंत तक तुम्हारा हाथ थामे सफररेत की तरह न सूखने देंगे होठो को हमनिशा का घोर तम हो या कि फिर हो सहरअनिश्चितताओं में निश्चिंत हो गुजरेगी रातहम ही रहनुमां और हम ही हमसफ़रमगर ये हो न सका……होता भी कैसे मुकम्मल? एक ख्वाब थाजमीं पर खड़े होकर माँगा माहताब थाजलना था मुझे कि जब तक अँधेरा हैपर कब तक जलता? एक चिराग थाफिर भी अगर मिल जाते हम कहींबराबर कर देते बाकि जो हिसाब थामगर ये हो न सका …..
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Behtreen rachnaa Shivdutt……………
Bahut bahut aabhar Shishir ji…
behad umda………laajwaab………
bahut bahut aabhar …
wah sir………behtareen…………………………
Aabhar Mani ji aapka bahut..
Bahut sundar…..
aabhar Anu ji aapka
Beautiful………………………..
Vijay ji dhanywaad…..
Lovely creation SHIVDUTT……….!!
shukriya nivatiya ji…
सुंदर रचना……. सुंदर भाव……….. शिवदत्त जी….
Kajal ji, bahut bahut aabhar aapki pratikriya ke liye..