यौवन की माया है तेरी कंचन सी काया है, तूने तासीर-ए-हुस्न में बहुतो को सताया है, सूख जाएगा एक दिन यौवन का झरना भी, तब यकीनन भूल जाएगी सजना सँवरना भी।शीशे में देखकर खुद को इतराना ठीक नहीं, शायद मालूम नहीं तुझको ज़माना ठीक नहीं,मुझे मालूम है मेरी बात का विश्वास नहीं तुझे,पर दिलजलो का दिल यूं जलाना ठीक नहीं,सीख जाएगी पलभर में मनचलों से डरना भी,तब यकीनन भूल जाएगी सजना सँवरना भी।सजती हैं महफ़िलें लोग तुझे याद करते हैं, तु शरीक जरूर होना ये फरियाद करते हैंं, ये जलवा तेरी बिजली सी अदाओं का है, कि इतने लोग तुझपर वक़्त बर्बाद करते हैं, होगा मंद सूखे पुष्प से खुश्बू का बिखरना भी,तब यकीनन भूल जाएगी सजना सँवरना भी।आज तुझे तेरे पीछे दुनिया दीवानी सी लगेगी, कल तेरी ज़िन्दगी तुझे ही वीरानी सी लगेगी, फिर ये मत कहना तुझे किसी ने बताया नहीं, आग मोहब्बत की बुढ़ापे में जवानी सी लगेगी, इसलिए जरूरी है इस राह चलकर ठहरना भी, ताकि कहीं भूल ना जाए तु सजना सँवरना भी…….
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Bahut khoob Ajay……Tumhaari bhaavnaae damdaar hoti hain.
तहे दिल से आपका आभारी हूँ सर कि आपने मेरे द्वारा साझा किये भावों को समझा बहुत बहुत धन्यवाद।
सुन्दर गीत रचना अजय ………………. ” रांझे की हीर ” एवं ” अलबेला हूँ ” को भी पढ़े और अपने विचार व्यक्त करे !
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर।
अति सुन्दर……………………
शुक्रिया सर।
Very nice …
धन्यवाद अनु जी।
बहुत ही खूबसूरत रचना………. पर किसी को सजने संवरने के लिए मना करना ठीक नहीं……. हा हा हा हा हा…
नहीं काजल जी मैंने किसी को सजने सँवरने से मना नहीं किया बस दिखावे पर ना जाए यही बात समझाने की कोशिश की है….. शुक्रिया काजल जी।
bahut acchae sir…….
धन्यवाद मनी जी प्लीज सर ना बुलाया करें।
Behad khubsurt tareek se man ki baat kahi hai aapne Ajay .
thank you so much Meena ji.