न चहकते रहे न महकते रहे हैं हमतलाश में तेरी भटकते रहे हैं हम। न किनारा अपना न किश्ती रही अपनीतूफाँ से यूँ ही उलझते रहे हैं हम। खुली जिल्द की सी किताब रही जिन्दगीखुले पन्नों तरह बिखरते रहे हैं हम। पूछा सच्चे दिल से तो दिल ने कहासुलझते सुलझते उलझते रहे हैं हम। ख्याल में होती रही हर साँस की हारशुष्क पत्तों तरह बिखरते रहे हैं हम। कभी तो आयेंगे वो मेरी कब्र परयही सोच के बस मचलतेे रहे हैं हम।——- भूपेन्द्र कुमार दवे 00000
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अतिसुन्दर रचना जी
सुन्दर रचना
bhut hi sundar rachana apki………………………….
Hame bahut pasand aayi apki ye rachana.very nice.
Bahut sundar rachna….
Bahut sunder……………………..
अति सूंदर हमेशा की तरह ………………. ” रांझे की हीर ” एवं ” अलबेला हूँ ” को भी पढ़े और अपने विचार व्यक्त करे !
बहुत ही खूबसूरत रचना……………