जिस्म मिटटी है सुना बहुत मैंने…पहले यकीं न था पर अब…यकीं होने लगा है….जिस्म मिटटी है…हर कोई आता है नश्तर ले के…खोदता है अच्छी तरह से…गढ्ढा बनाता है और…अपने मतलब का पौधा लगा जाता है…माली की तरह अनुशासित हो…हवा…पानी भी ज़रुरत मुताबिक़…समय समय पे आ देता है…पौधे कुछ तो बहुत ही कंटीले हैं…हलकी सी हवा चलने पे भी…बहुत चुभते हैं…कभी कभी खूँ निकाल देते हैं…और ज़मीं लाल कर देते हैं….और फिर उस लाली से…मिटटी उपजाऊ होती जाती है…नए पौधे निकलते आते हैं…..जिस्म मिटटी ही तो है….\/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)
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Bahut sundar rachna Sharmaji…
तहदिल आभार आपका………Anuji…….
ati sundar babbu ji …………
तहदिल आभार आपका…..Madhukarji…….
sahi kaha aap ne sir…………………bahut badiya sir….
तहदिल आभार आपका…..Maniji…….
जीवन के शाश्वत सत्य को उद्घाटित करती एक सुंदर रचना।
तहदिल आभार आपका…..Dr. Vivekji….
मिट्टी बहुत पूजनीय है शायद इसलिए धरती माँ के रूप में विख्यात है । शरीर की तुलना मिट्टी की उर्वरा शक्ति से अपने आप में अनुपम है । बहुत खूबसूरत रचना शर्मा जी ।
तहदिल आभार आपका……Meenaji…….
bhut khoobsurat kalpana ……..sarir aur dhrti ki sundar smta kiya hai apne.jo adbhut hai.
तहदिल आभार आपका……Madhuji…..
बहुत गहरी बात कहा गए बब्बू जी आप ने …………….. गूढ़ता हे परिपूर्ण इस रचना के माध्यम से मौकापरस्त और ईर्ष्यालु मानव प्रवृति पर कटाक्ष भी छुपा है इसमें ………..यक़ीनन बेहतरीन रचनात्मकता !
तहदिल आभार आपका…….निवतियाजी……आपने सही पहचाना है…..आपकी नज़रों के कायल हैं हम….अभी इसमें और कड़ी आने वाली है….पूरा नहीं कर पाया व्यस्त होने की वजह से….
बहुत ही खूबसूरत……… काबिले तारीफ…..
सच्ची बात कह जाते हैं आप……. शर्मा जी……
तहदिल आभार आपका….Kaajalji….
नमो नारायण !
बहुत सुन्दर रचना. भाव से ओतप्रोत.
नमो नारायण….तहदिल आभार आपका……Vijayji….
सच कहा आपने बब्बू जी हम सब मिट्टी से बनते हैं और दिन मिट्टी ही हो जाते हैं ,यह ही जीवन का नियम है ,सुंदर और सत्य से परिपूर्ण भाव
तहदिल आभार आपका……Kiranji…..