लब से मत कहो, आँखो से मत कहो, दिल की बातो को, दिल से कहो । लबो का क्या भरोसा, ये खामोश ही रहे, आँखो का क्या भरोसा, ये मदहोश ही रहे । वक्त यूँहि ना बीत जाए, इस खामोश मदहोशी में, जो भी कहना है मेरे दिल से, अपने दिल से कहो । आदमी का सफर जुड़ जाए, जब औरत के सफर से, अधुरी किताबे फिर वो पूरी करे, जीवन के सफर में ।अलग अलग कहानीयों में, ना बट जाए, जो भी कहना है मेरे दिल से, अपने दिल से कहो । लब से मत कहो, आँखो से मत कहो, दिल की बातो को दिल से कहो । #ashwin1827
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sachmuch dil se hi likha hai apne………. khoob……
धन्यवाद ।
Lovely sentiments ……………..
धन्यवाद ।
आश्विनजी….सुन्दर भाव आपके पर लय कम लगती है…और जैसे आपकी रचना है उसमें मुझे “आदमी-औरत” वाली बात जंची नहीं…उस से मिठास कम होती नज़र आती….हो सकता आपके भाव न पहुंचे हों मुझ तक…
दो जीव जब एक हो जाते है तो बहुत कुछ हासिल कर सकते है। आदमी – औरत का सफर एक होने से मेरा मतलब विवाह के बन्धन मे बंध जाने से था। आपके अनुसार अगर कुछ और प्रयोग मे लिया जा सके । मार्गदर्शन के लिए आभार ।
भावत्मक पहलू बहुत अच्छा है ………..बब्बू जी का विचार उत्तम है ……….तारम्यता पर कार्य करे रचना का सौंदर्य बढ़ेगा !
धन्यवाद ।
बहुत ही खूबसूरत…………. सुंदर भाव……
धन्यवाद ।
sunder rachna sir….
धन्यवाद ।