सुख की घड़ियाँ जाने कितनीउद्वेलित होकर आती हैं।जीवन-गाथा के पन्नों परशुभाषीश खुद लिख जाती हैं। सपने सुन्दर सहज सलोनेआशा की आभा में सजकरनयनों के पलनों में भोलेममता की गुदड़ी में छिपकर लेकर आते सुख की घड़ियाँजो रूप नया दे जाती हैंसुख की घड़ियाँ जाने कितनीउद्वेलित होकर आती हैं। कुछ अनुभव की अनुपम आभाजीवन के आँगन में फैलीखेल खिलाती सहस्र रश्मियाँउतरी हों तन मन में जैसी मीठे मीठे क्षण जीवन केस्वयं साथ वो ले आती हैंसुख की घड़ियाँ जाने कितनीउद्वेलित होकर आती हैं। अति सुन्दर शालीन क्षणों कीमाला गुथने बैठ गयी हैंमाणिक, मोती, स्वर्ण डोर मेंमहक भक्ति की जोड़ चली हैं कर श्रंगार अनोखे पल कावो सजधजकर ही आती हैंसुख की घड़ियाँ जाने कितनीउद्वेलित होकर आती हैं। बचपन इनके साथ बिता थामाँ की ममता साथ लिये थामतवाला यौवन भी इनकेआलिंगन में मस्त जिये था अब भी वो मीठी सी घड़ियाँयादें बनकर आ जाती हैंसुख की घड़ियाँ जाने कितनीउद्वेलित होकर आती हैं। अंत समय भी अच्छा होगाइस आशा से खुश होता हूँपास हृदय के यादें रखकरआँख मूँद सुख से सोता हूँ मृत्यु भी दहलीज तक आकरथपकी मुझको दे जाती हैंसुख की घड़ियाँ जाने कितनीउद्वेलित होकर आती हैं।… भूपेन्द्र कुमार दवे00000
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nice poem………..
laajwaab…….daveji….behad behad umda………aap oron ki rachnaaon pe be apne vichaar dein to achha rahega….
सत्य परक रचनात्मकता ……………अति सुंदर !
बहुत बहुत ही सुंदर……… रचना आपकी………..
bahut hi sunder sir……