शायद गीतों को ध्यान नहीं हैया जग को तेरा ज्ञान नहीं है। गूँगे शब्दों का कोलाहलखामोशी बन गूँज रहा हैजनम-जनम के विविध कुँजों मेंतन प्राणों को ढूँढ रहा है नश्वर जीव यह अस्थिपंजर-सानग्न देह है, नादान नहीं हैशायद गीतों को ध्यान नहीं हैया जग को तेरा ज्ञान नहीं है। मानव हर आँसू का बदलालेता है नित हिंसा द्वाराऔ प्रचार मिथ्या-भाषा काकरता झूठी कसमों द्वारा इस बहरे-गूँगे जग में क्योंकिशब्द अर्थ का सम्मान नहीं हैशायद गीतों को ध्यान नहीं हैया जग को तेरा ज्ञान नहीं है। चिंतन चंचल चपल बहुत हैकपट कुटिल क्रोधी कुकर्म सेकलम कटार-सी, लिपि लहू कीलिख जाता कंकाल दर्प से खूनी, जटिल, भ्रमित भाषा कासंगीत भाव में स्थान नहीं हैशायद गीतों को ध्यान नहीं हैया जग को तेरा ज्ञान नहीं है। जलें शब्द अंगार तपन मेंकरवट जिनकी चिनगारी-सीधधक उठे वाणी जिव्हा कीधुआँ उड़ाती किलकारी की इन बीभत्स्य असुरी गर्जन कीइन गीतों में पहचान नहीं हैशायद गीतों को ध्यान नहीं हैया जग को तेरा ज्ञान नहीं है। भय से कँपना, चुप हो छिपना,यूँ डरकर जीना, क्या जीनाकाल नाग तो फुँफकारे हैजीवन तो है विष का पीना जिसके सिर पर तलवार टँगी होवहाँ ताज की कुछ शान नहीं हैशायद गीतों को ध्यान नहीं हैया जग को तेरा ज्ञान नहीं है। पुलकित करने अपने मन कोसीखा कोई गीत सुहानामूच्छित चित्त, शून्य चेतना,छोड़ा अश्कों से जतलाना उन आँसू से संतोष करें क्याजिनका पलकों में मान नहीं हैशायद गीतों को ध्यान नहीं हैया जग को तेरा ज्ञान नहीं है।… भूपेन्द्र कुमार दवे00000
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bhut badhiya kavita ……………..khoob likha apne dave ji………
very deep thoughts…..nice…
bahut khoob………….
gahri baat sir…..bahut badiya sir…..
nice write…………..
बहुत सुन्दर रचना….
……………..
बड़ी सुंदरत से शब्दों को पिरोया है सुंदर रचना
इस बहरे-गूँगे जग में क्योंकि
शब्द अर्थ का सम्मान नहीं है
शायद गीतों को ध्यान नहीं है
या जग को तेरा ज्ञान नहीं है।
Bahut Sundar
अति सुन्दर रचनात्मकता …………………!!