नहीं दिख रहा जग में कोई बशर सा |खत्म ही लगे अब नेकी का असर सा ||खबर क्या किसी को डगर की बताओ |पहेली लगे जिंदगी का सफर सा ||रहे सोच मिलकर सभी क्या कमाया |निशाँ दिख रहा दिल में बन कर कसर सा ||दिखाओ न दर्पण किसी को कभी भी |फरिश्ता बना बैठा है हर बशर सा ||शिवाले कभी मस्जिदों को गिराकर |रहे लोग कैसे कमाने कहर सा ||मनिंदर सिंह “मनी”
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Bahut sundar Gazal Mani ji…
dhanywad anu ji…..
बहुत खूब मनी जी……जबरदस्त थोड़ा और बेहतर बनाया जा सकता था। पर फिर भी ठीक ही है।
ajay ji bataye kahan aap ko kami lag rahi hai…….mein abhi jaur jabrdast bana leta hu….
bhut khoob mani ji………………..sundar gazal……….
thanks madhu ji,,,,,
Mani I agree with Ajay above.
sir please thoda sa bataye kahan aap ko kami lag rahi hai………mein usse sudhar lunga sir…..
Mani dobaara rachnaa padhi to koi kami nazar nahi aayi. Shayad is baat maine sahi lay me padhi.
its ok …thank you sir….
Bahut khubasurat gazal Mani ji .
thank you meenaji….
बहुत ही खूबसूरत…… गजल मनी जी……
thank you kajal ji….
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन ग़ज़ल है,,,,,,,,,
shukriya sir……
मनीजी….ग़ज़ल बहुत खूबसूरत है….. “पहेली लगा जिंदगी भर सफर सा” देखो उचित लगता क्या…. और अंतिम शेर का दूसरा मिसरा नहीं समझ आया मुझे…माफ़ कीजै…
सी एम् शर्मा जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका आप की सरहाना और सुझावों के लिए….माफ़ी वाली बात मत कीजिए सर…सर आप डांट भी दे तब भी मैं आप से नाराज़ नहीं होने वाला सर…….हाहाहाहाहा…
सर इस में मैं ये कहना चाहता हूँ की महर (दहेज़) लाली (बेटी) को मार रहा है सर….देखिएगा…बात बनी के नहीं….
मनी जी… आप के भाव समझ रहा मैं…’महर’ शब्द यहाँ तक मेरा ज्ञान है…गलत हो सकता हूँ मैं…१००% पक्का नहीं हूँ…मुस्लिम समाज में शादी के वक़्त तय किया जाता की वो लड़की को इतनी महर देंगे…वो पैसों के रूप में हो या किसी और रूप में ताकि उसको किसी से मांगना न पड़े….और नोर्मल्ली यह एकमुश्त होती पर आजकल ये किस्तों में देते…और कुछ देते नहीं… हाँ जब तलाक होता तब इसका ज़िकर होता देखा मैंने…ज्यादातर की वो छोड़ने की एवज में इतना देंगे…. इस लिए मुझे यहाँ उपयुक्त लगा नहीं था…. अगर मैं गलत हूँ तो मुझे बताएं ज़रूर पूछ के किसी से…
ये महर ससुराल वाले देते….यहाँ तक पता मुझे…..शादी के टाइम….
sir aap bilkul theek….ye ladke walo ki taraf se ladki ko diya jata hai….ya to ussi wakt ya kuch samay ke baad….iss par ladke ya uske ghar walo ka koi huq nahi hota hai…..iss rassam ko kiye bina ladke ko shohar hone ka rutba nahi milta hai…..ye shariyat muslmano mein hota hai…iss hisaab se to galat hai…mehar wahan likhna….i will change it….wase shayar sahab ko bhi message kiya hai…dekhta hu wo kya kehte hai…..shukriya sir…..
tahe dil shukriya sir….aap ne itni gyan ki baat batyi……….ji jaroor meri id mein ek urdu ke shayar hai unn se puch kar batunga aap ko….ek baar phir dhanywad iss jankari ke liye….
बहुत खूबसूरत मनी ………….आवश्यक संशोसधन शिशिर जी और बब्बू जी ने संज्ञान में ला ही दिए है ………………!!
bahut bahut dhanywad sir…….