इन बिखरे हुए अल्फ़ाज़ों को समेट लूँ या चुप्पी का बेनाम हिस्सा बन जाने दूँ।इन बेगैरत पलों को सहेज लुँ या यादों का जहाज़ बनके उड़ जाने दूँ।इन कदमों की बेचैनी को रोक लूँ या ख्वाबों का एक हिस्सा इस दूरी को सौंप दूँ।इन नए अरमानों की बारिश में भीग लूँ या फिक्र के छाते से ख्वाहिशों को ओट लूँ।इन बेमाने सवालों को शिकायतें बना लूँ या जवाबों की रूह से अब पर्दा हटा दूँ।किस तरह चित्रित करूँ मन की इस विडम्बना कोशब्दों का जंजाल बना लूँ या ख़ामोशी के दफ्तर का गुमनाम दस्तावेज़ बना दूँ।
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bhut badhiya ………sabdo ka pryog khoob kiya hai…………apne
बहुत सुन्दर तरीक़े से मन का विश्लेषण किया है आपने
Bahut sundar….
Bahut khoob…….
Bahut achcha laga padhkar.
Beautiful…………