किसी के साथ में रहते ये ज़माने गुजर गएकिसी की धड़कनो में हम पल में उतर गएबड़े अरमानों के संग जिंदगी सौंपी थी हमनेआशियाँ सपनो के लेकिन पल में बिखर गएजिंदगी कुछ नहीं इक मिलन का खेल है साराचाँद को पाते ही रातों में ये सितारे निखर गएमलिनता मन में छाई हो तो चेहरे नहीं खिलतेपाक सीनों के मन आँगन तो फूलों से संवर गएमुकद्दर साथ ना दे कोई फिर क्या करे मधुकरहम तो बस लुटते आए है उल्फ़त में जिधर गए शिशिर मधुकर
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ज़िन्दगी के सफर के खट्टे मीठे कड़वे पलों का अनुभव बेहद ही खूबसूरती से पिरोया है….सच तो यही है…. निदा फ़ाज़ली साहिब का शेर याद आ गया….”कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता…कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता”…..
“पाक रूहों के घर आँगन तो फूलों से संवर गए” पहली पंक्ति से मिलती नहीं लगती…मन की मलिनता के साथ… पाक रूह के घर आँगन ‘मन’ से सँवर जाते होना चाहये जो मुझे लगता….
Babbu ji, Thank you very much for your observation. I have made a minor correction. Please have a relook .
bahut badhiya sar…thanks….
So nice of you Babbu Ji …….Your critical observations help a lot.
Very nice…..
Thank you so very much Anu …………….
‘मलिनता मन में छाई हो तो चेहरे नहीं खिलते
पाक सीनों के मन आँगन तो फूलों से संवर गए I’
very nice.
Hearty thanks Raquim Ali ……….
जिंदगी कुछ नहीं इक मिलन का खेल है सारा
क्या खूब लिखा है आपने.. सही कहा जिंदगी के बारे में .
Aaapka haardik aabhaar …………….
जीवन के अनुभव को सार्थक शब्दो में समेटा आपने …………….बहुत अच्छे शिशिर जी !
Thank you so very much Nivatiya Ji …………………..
बहुत ही खूबसूरत……… आज कल आप दर्द भरी रचनाये
अधिक लिख रहे हैं……. मधुकर जी….. हा हा हा…
aapne sahi farmaayaa. doosri tarah ki rachnaae bhi likhne kaa prayaas karoonga……
Bahut Khoobsurat lajawab rachna.
मलिनता मन में छाई हो तो चेहरे नहीं खिलते
पाक सीनों के मन आँगन तो फूलों से संवर गए
in do lines Mein sab Kuchh Hai.
Ajay appki khoobsoorat pratikriyaa ke lie hraday se shukriyaa …….
बेहद खूबसूरत ………. , मर्मस्पर्शी रचना शिशिर जी ।।
Thank you so very much Meena Ji…………………
बहुत ही बढ़िया …………………………………… लाजवाब मधुकर जी !!
Hraday se shukriya Sarvjeet …….
behratin peshkash sir apki…..
Thank you so very much Maninder for your lovely words……….