हर तरफ से तन्हाई के गम ने मुझे घेरा था । हर तरफ से जुदाई के गम ने मुझे घेरा था । मैंने छोड़ दिये मुहब्बत में कुछ पाने की ख्वाहिश, और बंद आँखों में भी , एक उजला सवेरा था। दर्द इतना था मुझे कि बता नहीं सकती । प्यार इतना था मुझे कि जता नहीं सकती। वो भले ही मुझे लाख सताये , मगर मैं उनकी तरह उन्हें रुला नहीं सकती। दिये जो तुने दिल से बद्दुआ वो मुझे कुबुल हो गयी। दिये जो दर्द वो गम , वो भी मुझे कुबुल हो गयी। मै तुमसे कुछ और नहीं कहती , बस करके तुमसे बेइंतहा मुहब्बत, मुझसे एक भुल हो गयी। . . ” काजल सोनी “
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Bahut hi sundar …Kajal ji….
तहे दिल से आभार आपका अनु जी……
bhut sundar rachana kajal ji…..gajab…….
तहे दिल से आभार आपका मधु जी…….
Khubsurat poetry kajal ji
तहे दिल से आभार आपका विनोद जी…….
भाव विश्लेषण बड़ी खूबसूरती से करती है आपकी कलम………
…………….,
तहे दिल से आभार आपका मीना जी…….
Kajal ji behtreen bhaav lekin imaandaari se kahun to rachnaa flow ko theek Karne ke lie sudhaar maangti hai jaise
हर तरफ से तन्हाई के गम ने mujhko घेरा था ।
हर तरफ से जुदाई के गम ने mujhko घेरा था ।
मैंने छोड़ dee मुहब्बत में jab पाने की ख्वाहिश,
Meri आँखों ke seamen ,umlaut सवेरा था।
मधुकर जी मुझे बुरा लगता है तब, जब आप मुझे खुलकर प्रतिक्रिया देने से झिझकते हैं……. मैंने आप सभी गुणी जनों
से ही तो सिखा है………. तहे दिल से बहुत बहुत आभार आपका….. जो मेरी रचना की कमियों को बताया आपने।
मैं पुनः अवलोकन कर रचना सुधारने की कोशिश करती हूँ । वैसे जल्दी edit nahi ho pata मुझसे ।
Yah samasyaa mere saath bhi thi or abhi bhi hai. Iskaa sahi ilaaz yah hai ki apne likhi rachnaa ko kuch samay kaa break lekar dobaaraa padho. Tab uski kami swayam ko nazar aati hain.
जी बिलकुल, सही सुझाव दिया आपने।
“umlaut” ko ujlaa padhe
मधुकर जी मैने कुछ शब्द सुधारा है……
कृपया एक बार फिर से नजर करे……
kajal ji…..bhav badiya hai…..par rachna kuch aur sudhar mangti hai…..
मनी जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका……
कुछ सुधारा है मैंने…… एक बार फिर बताये….
Kaajalji ….. Bahut khoob…..Par taalmel mein kami lag Rahi issmein….
“मगर मैं उनकी तरह उन्हें रुला नहीं सकती।”
इस पंक्ति की जगह
मगर मैं उसे उसकी तरह सता नहीं सकती।
और काजल जी माफ करिएगा तीसरा मुक्तक अभी भी मुझे स्पष्ट नहीं लग रहा है।