अनजानी सड़को परघर बना लेते है ये ,भटकती रहो से ,रिस्ता बना लेते है ये.नहीं मिल पाती है इन्हें ,एक वक्त की रोटी ,झूठी मुस्कान से ,पेट पकड़ कर रह जाते है ये ,कूड़े के ढेर में अपना ,भविष्य देखते है ये ,आने वाले कल ,कोउसी में खोजते है ये .थम से जाते है ये कदम ,ऐसे नजारे देख कर ,लौट आते है चुपचाप ,ऐसा लगता है ,आ गए है हम ,खुद से हारकर .सड़को पर चलने वालो को ,हो चाहत एक बार ,इनकी आँखों की सचाई पड़ने को ,कल नई सुबह होगी ,शायद एक वक्त की रोटी होगी ,इसी उम्मीद से सोते है ,लेकिन …फिर अपनी सुबहः अपना बचपनभीख के हवाले करते है .काश तुम भी हँसते ,थोड़ी खुसियो से रूबरू होते ,तो न आज इन सड़को पर रोते ,न किसी चित्रकार की तस्वीरों में होते ,न मेरी कलम का हिस्सा होते ,काश ..काश ,तुम थोड़ी खुसियो से रूबरू होते …अंजली यादवअटरिया -सीतापुरकॉलेज – KGMU LucknowMobile no.-9721550912
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अंजलि यादवजी…….बेहद ही खूबसूरत………अंत बहुत भावपूर्ण और दिशा प्रधान है…..ऊपर और बढ़िया हो सकती रचना…टंकण की अशुद्धियों को दूर कर और बेहतर तालमेल से…..
Veru sentimental thoughts …….
Emotional thoughts
बहुत बहुत सुन्दर
……………
Lovely creation………………. i agree with BABBU Ji………..pls. consider .
Bahut sundar….