विधा-ग़ज़लकाफिया-ओरदीफ़-तो कभी*************************चाहती हो मुझे अगर बताओ तो कभीदेख कर मुझको मुस्कुराओ तो कभीयूँ ना तड़पाओ तुम इतना दिल को मेरेहाल-ए-दिल अपना सुनाओ तो कभीदोस्त तो है बहुत पर तुझ से ना कोईपास बैठकर तुम बतियाओ तो कभीगम तो बहुत है जिंदिगी में मेरे दोस्तअपनी प्यारी बातो से हँसाओ तो कभीअगर रूठ जाऊं किसी बात पर तेरेतो प्यार जताकर मनाओ तो कभीक्या रखा है इस छनभंगुर जीवन मेंकुछ पल मेरे साथ बिताओ तो कभी(Poem.No-58) 29/03/2017Mob-9771692835
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पियुश्जी….बहुत बढ़िया…तुझसे की जगह तुझसा कर लीजे…टंकण अशुद्धि है….अंतिम शेर अलग सा लग रहा…क्षणभंगुर तो है जीवन…क्या रखा है…दूसरी पंक्ति से मिलता नहीं…अगर रखा कुछ नहीं तो साथ बिताने का मतलब ख़त्म हो जाता…. सुझाव के तौर पे लिख रहा हूँ….
छनभंगुर जीवन बीत न जाए यूं ही
कुछ पल मेरे साथ बिताओ तो कभी
बहुत खूब पीयूष
बहुत खुबसूरत……………
अति सुन्दर भाव ………….बब्बू जी ने ठीक कहा क्षणभंगुर अपने आप में परिपूर्ण शब्द है !!
Bahut sundar….