कभी मुद्दतों से जमा किया रेत के दानों सा बिखर गया।अब ना वो वक़्त रहा ना मौसम रहा ना रातें रही ना सहर रहा।शरगोसियों में ढूंढता था ज़माल-ए-इश्क़ वो आशिक़ कभी,बेखुदी में समझा तो बेपरवाह गुफ्तगू भी बे-असर रहा।एक दो नही हजारों दास्ताँ है उस सफर के साथ वाबस्ता,बेकशी में देखो ज़रा अब ना वो डगर रहा न सफर रहा।शिकवे शिकायतों में ज़ाया किया मैंने, सुनहरा वक़्त मेरे हिस्से का,परखने चला था लोगों को, मिला हर शख्स ज़ुबान-ए-खंज़र रहावक़्त दर वक़्त ये वक़्त गुज़रता रहा ,तुम बदलते रहे थोड़ा मैं भी बदलता रहाहमदोनो के इस बदल में देखोे कैसा बदल गया मौसम,की ना तुम तुम रहे ना मैं मैं रहा।।
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बहुत ही खूबसूरत रचना है आपकी…… . बहुत खूब।
शुक्रिया} अजय…….
Bahut sundar….
thanx anu mam…..
Behad sunder………
शुक्रिया
bhut badhiya gazal hai rakesh ji……….khoob……
Thanku mam…… 🙂
बहुत ही खूबसूरत रचना…………… ।
Thanx kajal ji..