लहरों में डूब गया दिन
दो पल के सपने गिन–गिन |
डाल–डाल पर बिखरे पत्ते
मौसम की गंध के लिए
जागे हैं अब सोए चेहरे
अपने अनुबंध के लिए
बागों में फूल खिले हैं
नभ पर हैं तारे अनगिन |
सपनो की नींव ढह गई
इन्द्रधनुष व्यर्थ हो गए
जीती बाजी तुमने हारी
इतने असमर्थ हो गए
अपने शब्दों की बैशाखी
बाँहों को हो रही क्षीण |
चन्दन पर विष कैसे फैले
चाहे हो सर्प ही विषैले
पूनो की श्वेत चाँदनी में
किसके तन के कपड़े मैले
दामन से चिपके जो धब्बे
लगते हैं वो हमें कठिन |
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Antim 2 panktiyan or बाँहों को हो रही क्षीण …. Kya kahna chahte nahin samjha main…