कैसे सोना जैसा समाज बनेगा ?———————————————————————-पुस्तक रखकर मैं लोगों को पढ़ा देह पर सफेद कपड़ा पहनने पर भी उसकी भीतर की काला ,अंधेरा, तंग ही देखा मैं जँहा भी गया हूँ हूँ सैकड़ों नगर,गांव -देहात लोगों को स्वार्थ में डूबा पाया हूँ दूसरों की दुःख घड़ी में आँखों आंसू नहीं देखा दुःख दरिया से लोगों को निकालने का साहस नहीं देखा देश में तैयार विकत परिस्थिती को देखकर कहाँ ,लोगों का खून गर्म नहीं हुआ आपनो की अत्याचार होते देखकर कँहा , गुस्सा तो नहीं आया ?इसलिए तो मूल्य बढ़ा है झूठ ,बुराई,भय,हिंसा और ईर्षाओ का उनके पास सच्चाई और प्यार की कोई मूल्य नहीं है नहीं चल सत्य पथ पर सदा -जीवन उच्च विचारऔर सत्य ही धर्म है इसलिए तो मन में प्रश्न जागती है कैसे सोने जैसा हमारा समाज बनेगा ?
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Sahi kahte gain aap ….100% sahi…..
its reality sir……
अति सुन्दर चंद्र मोहन जी ……………………बेहतर होगा की आप अन्य कवियों को भी पढ़े और अपने विचार साझा करे !!
bhut sundar bat hai chandramohan ji………khoob likha apne……. nivatiya ji sahi kh rahe hai….